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Nita Ambani के दिल के ज्यादा करीब क्यों है Mumbai Indians की वुमन टीम? खुद समझाया

Mumbai Indians women’s Team: नीता अंबानी ने एक इंटरव्यू में क्रिकेट को लेकर खुलकर बातचीत की। उन्होंने यह भी बताया कि क्यों मुंबई इंडियंस की महिला टीम उनके दिल के ज्यादा करीब है।

Photo Credit: मुंबई इंडियंस
Nita Ambani Love For Cricket: अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी की पत्नी और रिलायंस फाउंडेशन की चेयरपर्सन नीता अंबानी का क्रिकेट के प्रति प्यार किसी से छिपा नहीं है। इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के दौरान वह अपनी टीम मुंबई इंडियंस का उत्साह बढ़ातीं मैदान में नजर आ जाती हैं। ब्लूमबर्ग के साथ इंटरव्यू में नीता ने अपने इस 'प्रेम' के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि क्रिकेट उनके पसंदीदा खेलों में शुमार है और वह आज भी इसकी बारीकियां सीख रही हैं।

ऐसे बढ़ाई नॉलेज

नीता अंबानी ने एक पुराने किस्से का भी जिक्र किया, जब सचिन तेंदुलकर ने उन्हें एक मुश्किल से बाहर निकाला था। दरअसल, रिलायंस आईपीएल फ्रेंचाइजी मुंबई इंडियंस की मालिक है। इस नाते नीता और आकाश अंबानी आईपीएल से जुड़े आयोजनों में शामिल होते रहते हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्हें क्रिकेट का ज्यादा ज्ञान नहीं था। क्रिकेट के टेक्निकल शब्द उनकी नॉलेज से बाहर थे। उन्हें नहीं पता था कि स्पिन बॉलिंग या पेस बॉलिंग क्या होती है? लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने खिलाड़ियों के साथ बात करके अपनी नॉलेज बढ़ाई।

सचिन को किया फोन

नीता अंबानी के अनुसार, कुछ समय पहले हम लोग एक इंटरव्यू कर रहे थे, जिसमें सामने दुनिया के एक लोकप्रिय क्रिकेटर बैठे थे। हालांकि, मैं उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते थी। मुझे सही से उनका नाम भी नहीं पता था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि जब मैं उनके बारे में ज्यादा कुछ जानती ही नहीं हूं, तो सवाल क्या करूं? मैंने सचिन तेंदुलकर को फोन किया और पूरी स्थिति से अवगत कराया। उन्होंने तुरंत मेरी परेशानी को हल कर दिया। मेरे लिए वह बेहद अजीब स्थिति थी, लेकिन सचिन की बदौलत मैं उससे बाहर निकल सकी।

दिल के ज्यादा करीब

नीता अंबानी ने यह भी बताया कि मुंबई इंडियंस की वुमन टीम उनके दिल के ज्यादा करीब है। उन्होंने कहा कि लड़कियों को अपने सपने पूरे करने के लिए काफी कुछ सहना पड़ता है, उनका संघर्ष ज्यादा बड़ा होता है। अंबानी ने कहा कि लड़कियों को लेकर पैरेंट्स का नजरिया लड़कों वाला नहीं होता। उन्हें आसानी से किसी काम की इजाजत नहीं मिलती। स्पोर्ट्स फैसिलिटीज तक उनकी पहुंच भी सीमित होती है। ऐसे में जब छोटे-छोटे शहरों से ये लड़कियां आती हैं, हमारे लिए खेलती हैं और अपने संघर्ष की कहानी बताती हैं, तो उनकी सफलता दूसरों को भी प्रेरित करती है।


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