चक्की के दो पाटों के बीच पिसता उपभोक्ता: जागरूक बनें और मिलावटखोरों के विरूद्ध डटकर खड़े हों
डॉ. केपी द्विवेदी शास्त्री। मनुष्य में सदा ही धनार्जन की लालसा बनी रही है। अधिक से अधिक धन कमाने की होड़ में नैतिकता का पतन करके भी लोग पैसा कमा रहे हैं। पैसा कमाने के लिये क्रेता और विक्रेता उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
जल्दी अमीर बनने की लालसा में मनुष्य किसी भी हद तक जाने को तैयार है। ऐसे व्यक्तियों के लिए मिलावट एक आसान रास्ता है। इस भ्रष्ट व्यवस्था में मिलावट करने वाले कारोबारियों के पास बच निकलने के बहुत रास्ते भी हैं। पुराने लोगों की कहावत है कि 'कुछ तो सिक्का खोटा है और कुछ सुनार खोटा। इसका मतलब, कुछ तो उपभोक्ता जागरूक नहीं हैं और कुछ प्रशासनिक व्यवस्थाओं में भ्रष्टाचार है।
उपभोक्ता कल्याण समिति द्वारा विगत 22 वर्षों से लगातार देशभर में उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। सरकारी, गैर सरकारी और भी संस्थाएं हैं, जो उपभोक्ताओं में जागृति लाने का प्रयास कर रही हैं। लेकिन, उपभोक्ताओं की लापरवाही जस की तस बनी हुई है।
ऐसे बन रहा है नकली देसी घी
गोयाकि, 40 प्रतिशत रिफाइंड तेल, 60 प्रतिशत फॉर्चून वनस्पति और देसी घी का सेंट मिलाकर नकली देसी घी बनाया जा रहा है। समय-समय पर नकली दूध बाजार में बेचे जाने के समाचार भी समाचार-पत्रों में प्रकाशित हो रहे हैं। गेहूं में मिट्टी व पत्थरों की मिलावट, दालों में मिलावट, सब्जियों में इंजेक्शन लगाकर रातोंरात बढ़ा देना। कार्बाइड से पके फल, शायद ही कोई ऐसा खाद्य पदार्थ हो जो मिलावट से खाली हो। इतना ही नहीं, पैट्रोल व डीजल में भी मिलावट है। इन सभी बातों को अधिकांश उपभोक्ता जानते हैं फिर भी खरीदारी करते समय आंखें बंद कर लेते हैं।
अब बात करते हैं उपभोक्ता मामलों से जुड़े विभागीय अधिकारियों की। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम बनाया तो गया था उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए, लेकिन कुछ भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी मिलावट व घटतौली करने वाले व्यापारियों को संरक्षण दे रहे हैं।
व्यापारी-प्रशासनिक अधिकारियों का मिलावटी गणित
नाम मात्र उपभोक्ता ऐसे हैं, जो मिलावट या घटतौली के विरूद्ध शिकायत करते हैं और विभागीय अधिकारी भी नाममात्र व्यापारियों पर कार्यवाही करके अपना फर्ज पूरा कर देते हैं। मिलावट करने वाले व्यापारी और प्रशासनिक अधिकारियों ने मिलकर ऐसा गणित सेट किया है, जिसमें कुल मिलाकर आखिर में नतीजा जीरो ही होता है। व्यापारी पैसे से मजबूत है। अधिकारी पावर पैसे से खरीदी जाती है। चक्की के दोनों पाटों के बीच पिसता उपभोक्ता जटिल न्यायिक प्रक्रिया में दफ्तरों के चक्कर लगाता रहता है। अंत में नतीजा वो ही जीरो आता है।
वर्षों से चलते इस खेल में हार उपभोक्ता की ही होती है। लेकिन, इस हार के लिए जिम्मेदार खुद उपभोक्ता ही है। हमें अपने अधिकारों का संरक्षण स्वयं करना होगा। भारतीय संविधान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों को सुरक्षित किया है।
यदि अकेले या संगठित होकर अन्याय के विरूद्ध डटकर खड़े होंगे और हिम्मत नहीं हारेंगे, तो अवश्य ही न्याय प्राप्त होगा। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी किये गए मानक चिन्हों की जानकारी प्राप्त करें।
मानक चिन्हों की जानकारी रखें
- बिल द्वारा ही खरीदारी करें।
- कच्चे लालच में न फंसें।
- नकली व मिलावटी सामान को जांचने का प्रयास करें।
- नकली सामान को बेचने वालों के लिये बच निकलने का कोई रास्ता न छोड़ें।
गौरतलब है कि भ्रष्ट और लालची व्यापारियों द्वारा बनाये गये इस चक्रव्यूह को केवल सजग उपभोक्ता ही तोड़ सकता है। हमें खून-पसीने की कमाई को बचाने और अपने परिवार के स्वस्थ जीवन एवं स्वस्थ समाज के निर्माण के लिये इस लड़ाई को लड़ना होगा और निरंतर लड़ना होगा क्योंकि सजग उपभोक्ता ही सुख भोगता है।
(लेखक अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता कल्याण समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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