G20 समिट में इन मुद्दों पर होगी चर्चा, दिल्ली से दुनिया को मिलेगा ये संदेश
G20 Summit
G20 Summit Agenda : दुनिया से सबसे मजबूत वैश्विक समूह जी20 के शिखर सम्मेलन का आयोजन 9-10 सितंबर दिल्ली में होना है। इस सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति मैंक्रो, जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोल्ज, जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, चीन के प्रधानमंत्री ली क्यांग, रूसी विदेश मंत्री लावरोव, सउदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, ऑस्ट्रेलिया के पीएम एंथोनी अल्बानीज, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति युन सौक यौल जैसे कई बड़े नेता शामिल होंगे।
इस आयोजन को लेकर लगभग सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। भारत की मेजबानी में आयोजित 18वें जी20 का इस साल सामूहिक थीम 'वसुधैव कुटुंबकम' यानी पूरी पृथ्वी एक परिवार है। थीम के मुताबिक भारत का प्रयास है कि एक विश्व, एक परिवार के आधार पर देशों की समस्याओं का समाधान इस मंच से निकालने की कोशिश की जाए।
जी 20 अपने सदस्य देशों के बीच खुली बातचीत को बढ़ावा देने का पक्षधर रहा है। यह सदस्य देशों को किसी भी समस्या का समाधान कूटनीतिक के जरिए सुलझाने को बढ़ावा देता है साथ ही आर्थिक स्थिति को स्पष्ट तरीके से मजबूत करने पर बल देता है। इस मंच पर अलग-अलग पृष्ठभूमि के नेता वैश्विक प्राथमिकताएं तय करने की कोशिश करते हैं।
भारत आयोजित होने जा रहे जी 20 के 18वें समिट में सदस्य देश वैश्विक अर्थव्यवस्था, वित्तीय, व्यवसाय, निवेश, जलवायु परिवर्तन समेत कई जरूरी मुद्दों पर चर्चा करेंगे। साथ ही सदस्य देश दिल्ली समिट में निर्माण, फंडिंग गैप को कम करने, रोजगार के अवसर बढ़ाने, सतत विकास और समावेशी ईकोसिस्टम में बढ़ावा देने कई मुद्दों पर ठोस रणनीति का ऐलान कर सकते हैं।
दरअसल दुनिया की जीडीपी में G 20 देशों की हिस्सेदारी करीब 85 फीसदी है। वहीं जी 20 समूह देशों की अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हिस्सेदारी 75 प्रतिशत है। ऐसे आने वाले समय में भी जी 20 वैश्विक आर्थिक उन्नति और समृद्धि को हासिल करने महत्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका निभा सकता है।
जी 20 शिखर सम्मेलन से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा दुनिया की वास्तविक चुनौतियों की पहचान जरूरी है। न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू पीएम मोदी ने साफ-साफ कहा कि 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए 20वीं सदी की नीति और दृष्टिकोण से काम नहीं चलेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि दुनिया के दूसरे देशों जिनकी आर्थिक हालात खराब हैं, उन्हें कर्ज के बोझ से निकालने का भी कोशिश किया जाना चाहिए।
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