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वित्त मंत्रालय नहीं देता LIC को निवेश पर सलाह: वित्त मंत्री

अक्टूबर में, द वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि फाइनेंस मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में LIC को अडाणी ग्रुप में इन्वेस्ट करने के लिए एक प्लान बनाया था, जब पोर्ट्स-टू-एनर्जी ग्रुप पर US में भारी कर्ज और जांच का सामना करना पड़ रहा था.

एलआईसी पर ये आरोप लग रहे थे क‍ि वह अडाणी ग्रुप में न‍िवेश कर रही है.

फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कहा कि उनका मंत्रालय लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (LIC) को उसके इन्वेस्टमेंट के फैसलों के बारे में कोई सलाह या निर्देश जारी नहीं करता है और इस बात पर जोर दिया कि सरकारी इंश्योरेंस कंपनी ने अडाणी ग्रुप में जो इन्वेस्टमेंट किए, वे तय SOPs के मुताबिक थे. भारत की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी ने पिछले कुछ सालों में, फंडामेंटल्स और डिटेल्ड ड्यू डिलिजेंस के आधार पर कंपनियों में इन्वेस्टमेंट के फैसले लिए हैं. तय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOPs) के मुताबिक ड्यू डिलिजेंस के बाद, इसने अडाणी ग्रुप की आधा दर्जन लिस्टेड कंपनियों के शेयर खरीदे हैं, जिनकी बुक वैल्यू 38,658.85 करोड़ रुपये है और ग्रुप के डेट इंस्ट्रूमेंट्स में और 9,625.77 करोड़ रुपये इन्वेस्ट किए हैं.

फाइनेंस म‍िन‍िस्‍ट्री नहीं देती LIC को सलाह

लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में उन्होंने कहा क‍ि फाइनेंस मिनिस्ट्री LIC फंड के इन्वेस्टमेंट से जुड़े मामलों में LIC को कोई सलाह/निर्देश जारी नहीं करती है. उन्होंने कहा कि सरकारी इंश्योरेंस कंपनी के इन्वेस्टमेंट के फैसले सिर्फ LIC ही सख्त ड्यू डिलिजेंस, रिस्क असेसमेंट और फिड्यूशरी कम्प्लायंस के बाद लेती है.

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उन्होंने कहा कि ऐसे फैसले इंश्योरेंस एक्ट, 1938 के नियमों के साथ-साथ इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI), रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) (जहां भी लागू हो) द्वारा समय-समय पर जारी किए गए नियमों के तहत आते हैं.

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द वॉश‍िंगटन पोस्‍ट की र‍िपोर्ट
अक्टूबर में, द वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि फाइनेंस मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में LIC को अडाणी ग्रुप में इन्वेस्ट करने के लिए एक प्लान बनाया था, जब पोर्ट्स-टू-एनर्जी ग्रुप पर US में भारी कर्ज और जांच का सामना करना पड़ रहा था.

रिपोर्ट में LIC के मई 2025 में अडाणी पोर्ट्स एंड SEZ (APSEZ) में USD 570 मिलियन (लगभग Rs 5,000 करोड़) के इन्वेस्टमेंट के बारे में बताया गया था.

सीतारमण ने कहा क‍ि LIC ने मई 2025 में अडाणी पोर्ट्स स्पेशल इकोनॉमिक जोन (APSEZ) द्वारा जारी सिक्योर्ड नॉन-कन्वर्टिबल डिबेंचर (NCD) में 5,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है, जो उनके बोर्ड द्वारा मंजूर पॉलिसी के अनुसार तय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOPs) का पालन करते हुए ड्यू डिलिजेंस करने के बाद किया गया है.

उन्होंने आगे कहा कि LIC ने NSE और BSE पर लिस्टेड टॉप 500 कंपनियों में निवेश किया है, और अभी इसका एक बड़ा हिस्सा इनमें से बड़ी कंपनियों में है.

उन्होंने कहा क‍ि 30 सितंबर, 2025 तक, Nifty 50 कंपनियों में LIC के इन्वेस्टमेंट की बुक वैल्यू 4,30,776.97 करोड़ रुपये है, जो उसके कुल इक्विटी इन्वेस्टमेंट का 45.85 परसेंट है.

जो चेक-एंड-बैलेंस किए गए हैं, उनकी डिटेल देते हुए उन्होंने कहा कि LIC के इन्वेस्टमेंट फंक्शन को कॉन्करेंट ऑडिटर, स्टैच्युटरी ऑडिटर, सिस्टम ऑडिटर, इंटरनल फाइनेंशियल कंट्रोल (IFC) ऑडिटर और इंटरनल विजिलेंस टीम वेरिफाई करती है.

उन्होंने कहा क‍ि इस बारे में सेक्टर रेगुलेटर IRDAI द्वारा समय-समय पर इंस्पेक्शन भी किए जाते हैं. LIC द्वारा किए गए इन्वेस्टमेंट पर सरकार की कोई सीधी निगरानी नहीं है.

LIC के टॉप इन्वेस्टमेंट की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि प्राइवेट कंपनियों में, इंश्योरेंस कंपनी का सबसे ज़्यादा इक्विटी इन्वेस्टमेंट रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड में 40,901.38 करोड़ रुपये है, इसके बाद इंफोसिस में 38,846.33 करोड़ रुपये, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में 31,926.89 करोड़ रुपये, HDFC बैंक में 31,664.69 करोड़ रुपये और हिंदुस्तान यूनिलीवर में 30,133.49 करोड़ रुपये हैं.

इसी तरह, प्राइवेट सेक्टर में इसका सबसे बड़ा कर्ज HDFC बैंक के पास है, जिस पर इसका कुल 49,149.14 करोड़ रुपये का बकाया है. इसके बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज में 14,012.34 करोड़ रुपये, ICICI बैंक में 13,435 करोड़ रुपये, श्रीराम फाइनेंस में 11,075 करोड़ रुपये और अडाणी पोर्ट्स एंड SEZ लिमिटेड में 9,625.77 करोड़ रुपये हैं.

अडाणी ग्रुप की कंपनियों में, LIC का CNG रिटेलर अडानी-टोटल गैस लिमिटेड में सबसे ज़्यादा 8,646.82 करोड़ रुपये का निवेश है. उन्होंने कहा कि LIC के कुल निवेश में यह 25वें स्थान पर है.

अडाणी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी, अडाणी एंटरप्राइजेज में LIC का 8,470.60 करोड़ रुपये का निवेश इसकी कुल लिस्ट में 27वें स्थान पर है, जबकि सीमेंट बनाने वाली कंपनी अंबुजा सीमेंट्स में 5,787.73 करोड़ रुपये का निवेश 40वें स्थान पर है. APSEZ में 5,681.10 करोड़ रुपये LIC की कुल निवेश लिस्ट में 43वें स्थान पर है, पावर ट्रांसमिशन कंपनी अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस लिमिटेड में 3,729.68 करोड़ रुपये 65वें स्थान पर है, क्लीन एनर्जी कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड में 3,486.10 करोड़ रुपये 71वें स्थान पर है और सीमेंट बनाने वाली कंपनी ACC में 2,856.82 करोड़ रुपये 81वें स्थान पर है.

उन्होंने आगे कहा क‍ि SEBI की गाइडलाइंस के मुताबिक, सभी लिस्टेड कंपनियों को उन शेयरहोल्डर्स के नाम बताने होते हैं जिनके पास कंपनी में 1 परसेंट या उससे ज्‍यादा शेयर हैं. इसलिए, जिन कंपनियों में LIC की 1 परसेंट या उससे ज़्यादा इक्विटी हिस्सेदारी है, उनकी जानकारी पब्लिक डोमेन में मौजूद है.

LIC कोई छोटा, सिंगल-पर्पस फंड नहीं है, बल्कि भारत का सबसे बड़ा इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर है जिसके पास 41 लाख करोड़ रुपये (USD 500 बिलियन से ज़्यादा) से ज़्यादा के एसेट्स हैं. यह लगभग हर बड़े बिज़नेस ग्रुप और सेक्टर में फैले 351 पब्लिकली लिस्टेड स्टॉक्स (2025 की शुरुआत तक) में इन्वेस्ट करता है. भारत की टॉप 500 कंपनियों में इसकी इन्वेस्टमेंट वैल्यू 2014 से 10 गुना बढ़ी है. 1.56 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 15.6 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जो मजबूत फंड मैनेजमेंट को दिखाता है.

LIC के पास बड़े सरकारी बॉन्ड और कॉर्पोरेट डेट भी हैं. इसका पोर्टफोलियो बहुत डायवर्सिफाइड है, जो रिस्क को फैलाता है.

अडानी ग्रुप में LIC का एक्सपोजर, भारत के दूसरे सबसे अमीर आदमी गौतम अडाणी के ग्रुप के कुल कर्ज के 2 परसेंट से भी कम है.

जब वाशिंगटन पोस्ट ने रिपोर्ट पब्लिश की, तो LIC ने कहा था कि अडाणी ग्रुप की कंपनियों में उसके इन्वेस्टमेंट इंडिपेंडेंटली और बोर्ड से अप्रूव्ड पॉलिसी के अनुसार, डिटेल्ड ड्यू डिलिजेंस के बाद किए गए हैं.

X पर पोस्ट किए गए एक बयान में LIC ने कहा था क‍ि डिपार्टमेंट ऑफ फाइनेंशियल सर्विसेज (यूनियन फाइनेंस मिनिस्ट्री में) या किसी दूसरी बॉडी का ऐसे (इन्वेस्टमेंट) फैसलों में कोई रोल नहीं होता है. इन्वेस्टमेंट के फैसले LIC द्वारा इंडिपेंडेंटली बोर्ड से अप्रूव्ड पॉलिसी के अनुसार डिटेल्ड ड्यू डिलिजेंस के बाद लिए जाते हैं. LIC ने ड्यू डिलिजेंस के सबसे ऊंचे स्टैंडर्ड्स को पक्का किया है और उसके सभी इन्वेस्टमेंट फैसले मौजूदा पॉलिसी, एक्ट्स के प्रोविजन और रेगुलेटरी गाइडलाइंस के हिसाब से, उसके सभी स्टेकहोल्डर्स के सबसे अच्छे हित में लिए गए हैं.


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