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BRICS देशों से क्यों नाराज हैं Donald Trump, 100% टैरिफ के क्या हैं मायने?

Donald Trump BRICS Warning: डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद से टैरिफ को लेकर बयान देते आए हैं। शपथ ग्रहण के बाद भी उन्होंने ब्रिक्स देशों पर भारी टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है।

Donald Trump
Trump Tariff:  डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद कई तरह की आशंकाएं उत्पन्न हो गई हैं। जिस तरह का रुख वह दर्शाते रहे हैं, उससे भारत सहित कई देशों के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि ब्रिक्स यूएस डॉलर को रिप्लेस करने की योजना पर आगे बढ़ते हैं, तो इसका अंजाम 100% टैरिफ होगा।

ट्रंप ने दी धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद अपने भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि ब्रिक्स देशों द्वारा डॉलर से दूरी बर्दाशत नहीं की जाएगी। अगर ब्रिक्स देश ग्लोबल ट्रेड में डॉलर के इस्तेमाल में कटौती की दिशा में कोई कदम उठाते हैं, तो फिर 100 फीसदी टैरिफ के लिए तैयार रहें। यूएस प्रेसिडेंट ने कहा कि वैश्विक व्यापार में डॉलर की भूमिका को कम करने की किसी भी कोशिश को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसा करने वालों को भारी कीमत चुकानी होगी।

ब्रिक्स में इतनी आबादी

चलिए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ब्रिक्स देश ऐसा क्या करने का सोच रहे हैं, जिसने डोनाल्ड ट्रंप को नाराज कर दिया है। ब्रिक्स देशों के प्रमुख सदस्यों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिक्स देशों में दुनिया की 45% से ज्यादा आबादी रहती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनकी 28% हिस्सेदारी है। अगस्त 2023 में ब्रिक्स से एक ऐसी खबर निकली, जिसने अमेरिका को टेंशन में डाल दिया। यह भी पढ़ें - Trump Tariff के असर को ऐसे सीमित करेगा भारत, बनाया है सॉलिड प्लान!

ऐसे हुई शुरुआत

दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में अगस्त 2023 में ब्रिक्स देशों का सम्मेलन हुआ, जिसमें ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा ने एक अलग करेंसी का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों के बीच आपस में व्यापार के लिए एक कॉमन करेंसी होनी चाहिए। इसके बाद अक्टूबर 2024 में रूस में हुए सम्मेलन में भी डॉलर के एकछत्र राज को चुनौती देने की बातें निकलकर सामने आईं। इस दौरान, ब्रिक्स देशों की नई करेंसी की एक प्रतीकात्मक तस्वीर भी काफी वायरल हुई।

अभी डॉलर का दबदबा

फिलहाल, ग्लोबल ट्रेड में डॉलर का दबदबा है। अधिकांश देश अमेरिकी करेंसी में ही भुगतान करते हैं। ऐसे में यदि ब्रिक्स देश डॉलर का विकल्प लेकर आते हैं, तो उसकी बादशाहत को चुनौती मिलना तय है। तमाम एक्सपर्ट्स कहते आए हैं कि डॉलर के अलावा दुनिया में एक और करेंसी को रिजर्व करेंसी का दर्जा मिलना चाहिए, जिससे अमेरिकी डॉलर के दबदबे को चुनौती दी जा सके। डोनाल्ड ट्रंप जानते हैं कि 100% टैरिफ से ब्रिक्स देशों के व्यापार पर असर पड़ेगा, इसलिए वह डर बनाकर उन्हें अपनी करेंसी की दिशा में आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं।

भारत ने स्पष्ट किया रुख

ब्रिक्स में फिलहाल 10 देश शामिल हैं- रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात। यदि ये सभी देश डॉलर के बजाए एक अलग करेंसी में कारोबार शुरू करते हैं, तो अमेरिकी डॉलर की सेहत प्रभावित होना लाजमी है, इसलिए डोनाल्ड ट्रंप तिलमिलाए हुए हैं। हालांकि, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने डी-डॉलराइजेशन के संबंध में भारत के रुख की पुष्टि करते हुए कहा कि देश ने कभी भी इसका समर्थन नहीं किया और ब्रिक्स देशों की अपनी करेंसी लाने की कोई योजना नहीं है।  


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