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इंसानी दिमाग से कैसे रेस लगा रहा है तकनीक का एडवांस वर्जन, क्या AI खत्म करेगा नौकरियां?

Bharat Ek Soch: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जहां एक ओर नई नौकरियों के अवसर पैदा हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ नौकरियों पर भी संकट बढ़ गया है। तकनीक का आने वाला समय कैसा होगा और AI का क्या असर पड़ेगा, इसे लेकर आज हम अपने खास कार्यक्रम AI... शक्ति या संहार? में बात करेंगे।

anurradha prasad

Bharat Ek Soch: आपने बचपन में चिराग से जिन्न निकलने वाली कहानी सुनी होगी। जिसमें चिराग के रगड़ने पर चिन्न निकलता था और कहता था कि क्या हुक्म है मेरे आका? आका के मुंह के निकले शब्द यानी कमांड को पलक झपकते ही जिन्न पूरा कर देता था। ऐसी कहानियां सिर्फ कपोल कल्पना मानी जाती हैं, लेकिन कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वजूद में आए तो कहा जाने लगा कि ये भी उसी जिन्न की तरह हैं जो इंसान के ज्यादातर कमांड पलक ही झपकते पूरा कर देते हैं। एआई के एडवांस वर्जन यानी जेनेरेटिव एआई ने पूरी तस्वीर बदल दी। मशीन के भीतर इंसान जैसी सोचने-समझने की शक्ति विकसित करने का काम दुनिया के कई हिस्सों में चल रहा है।

एआई और जेनेरेटिव एआई में क्या फर्क है?

दुनिया के बेस्ट टेक्निकल ब्रेन और तकनीक टायकून अक्सर कहते रहते हैं कि दुनिया में वो दिन दूर नहीं, जब मशीनों को इंसान से कमांड लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसमें सुंदर पिचाई, एलन मस्क, बिल गेट्स और युवाल नोआ हरारी जैसी लोग शामिल हैं। इजराइल के युवा इतिहासकार युवाल नोआ हरारी एआई के हर पहलू पर खुलकर बोलते रहे हैं। उनकी दलील है कि एआई मानव इतिहास की हर पिछली तकनीक से अलग है। यह पहली तकनीक है जो खुद फैसला ले सकती है। अब सवाल उठता है कि अगर हालात के हिसाब से मशीन फैसला लेने लगेगी, अपने फैसलों के लागू करने लगेगी तो क्या इंसान की प्रासंगिकता खत्म नहीं हो जाएगी? क्या मशीनों को कंट्रोल नहीं किया गया तो इंसान का वजूद खतरे में नहीं आएगा? ऐसे सवालों पर मंथन से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर एआई और जेनेरेटिव एआई में फर्क क्या है? ये किस तरह से इंसान के काम को आसान बना रही है?

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AI बनाने की गलती का एहसास हुआ

Geoffrey Hinton की पहचान पूरी दुनिया में AI के गॉडफादर की है। एआई बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले ज्योफ्री हिंटन ने एक बार कहा था कि मुझे अपने काम पर पछतावा हो रहा है। इसका एक मतलब ये भी निकाला जा सकता है कि ज्योफ्री को AI बनाने की गलती का एहसास हो रहा है। करीब महीना भर पहले Open AI के CEO सैम आल्टमैन और Microsoft के सह संस्थापक बिल गेट्स एक पॉडकास्ट में सामने आए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों का जिक्र सैम आल्टमैन पहले भी कई बार कर चुके हैं। जनवरी में समाज और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को इसके नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए आल्टमैन ने International Atomic Energy Agency की तर्ज पर एक इंटरनेशनल एजेंसी बनाने की बात कही। मतलब, खुद चैट GPT बनाने वाले सैम आल्टमैन को जेनरेटिव एआई परमाणु बम जैसी खतरनाक लग रही है।

AI की मदद से कृषि से स्वास्थ्य तक के क्षेत्र में बदलाव

युवाल नोआ हरारी जैसे इतिहासकारों को लगता है कि खुद फैसला लेने में सक्षम तकनीक इंसान को खत्म कर सकती है। हालांकि, हरारी दलील देते हैं कि इंसान का अंत उस तरह से नहीं होगा जैसा परमाणु हथियारों से होता है। टेक्नोलॉजी में इतना बदलाव आएगा कि इंसान के सामने वजूद बचाने की बड़ी चुनौती आ सकती है। मतलब, तकनीक सबकुछ बदल देगी सब बर्बाद कर सकती है। अभी दुनिया के सामने एआई के नए-नए वर्जन लोगों के सामने आ रहे हैं जिसमें लोगों को अपने लिए बेहतर संभावनाएं दिख रही हैं। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में भी एआई में बेशुमार संभावनाएं भी देखी जा रही है AI की मदद से कृषि से स्वास्थ्य तक के क्षेत्र में बड़े बदलाव की स्क्रिप्ट तैयार करने का काम चल रहा है। देश के भीतर फसल बीमा कंपनियां पैदावार और सूखे की मॉनिटरिंग के लिए एआई का इस्तेमाल कर रही हैं देश के कई राज्य कानून-व्यवस्था बेहतर बनाने में भी AI की मदद ले रहे हैं।

इंसानी दिमाग जितना क्रिएटिव नहीं

दुनिया दो हिस्सों में बंट चुकी है, वर्चुअल Vs रियल। दोनों के अपने-अपने नफा-नुकसान है। इंसान के दिमाग और कंप्यूटर में सबसे बड़ा अंतर ये है कि इंसानी दिमाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तुलना में बहुत धीमा है। इंसानी दिमाग की क्षमता यानी कंप्यूटर की भाषा में कहें तो स्टोरेज क्षमता सीमित है, लेकिन इंसानी दिमाग जिस तरह सवाल कर सकता है जितना क्रिएटिव है, वैसी क्षमता एआई में नहीं है। खुद Chat GPT के क्रिएटर सैम ऑल्टमैन भी कुबूल कर चुके हैं कि तकनीक सुरक्षित है लेकिन, इस पर पूरी तरह से भरोसा करना ठीक नहीं है।

पांच साल के बाद दुनिया कैसी होगी

आज की तारीख में लोगों के मन में बड़ा सवाल यही है कि क्या एआई से लैस मशीनें इंसान को पछाड़ देंगी क्योंकि, मशीनों को इस तरह विकसित किया जा रहा है, जिसमें वो परिस्थितियों के हिसाब से फैसला ले सकें? अगले पांच साल के बाद दुनिया कैसी होगी, उसमें AI किस तरह की भूमिका निभा रहा होगा। अभी तक ये माना जा रहा है कि मशीन भले ही इंसानी दिमाग की तरह काम कर ले, इंसानी दिमाग से भी तेज काम कर ले, लेकिन मशीन के भीतर इंसान जैसी संवेदना या भावना पैदा नहीं की जा सकती है, लेकिन युआव नोवा हरारी जैसे इतिहासकार भविष्यवाणी करने लगे हैं कि AI रोबोट्स रिश्ता निभाने में अपना 100% इमोशन लगा सकते हैं। इसका एक मतलब ये भी हुआ कि भविष्य में रोबोट सामने वाले को आकर्षित करने में इंसानों को पीछे छोड़ सकते हैं ।

अपडेट और अपग्रेड करने की जरूरत होगी

तेजी से बदलती दुनिया में अकेलापन एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। कहीं बुजुर्ग अकेले हैं, कहीं युवा अकेले होते जा रहे हैं। रिश्तों के मायने भी तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में लोग भविष्य में अपनी जरूरत के मुताबिक ह्यूमनॉइड रोबोट को अपनाने की ओर बढ़ सकते हैं। ह्यूमनॉइड रोबोट में अपनी खुशियां खोजते दिख सकते हैं। मतलब, एक पढ़ा-लिखा इंसान जितनी तेजी से एआई की दुनिया में आते बदलावों को महसूस कर रहे हैं, उससे कई गुना तेजी से दुनिया बदल रही है। नौकरियों के स्वरूप में भी तेजी से बदलाव भी तय है ऐसे में हर नौकरीपेशा शख्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को दो-तीन साल के भीतर अपडेट और अपग्रेड करने की होगी। दुनिया भर में अगले 10 से 15 साल के भीतर एक ऐसा वर्ग तैयार हो जाएगा जो नौकरियों के लिए अनफिट होगा। जिसे कंपनियां Asset नहीं Liability की तरह देखेंगी। अब सवाल उठता है कि एआई के नकारात्मक प्रभावों से बचाने के लिए दुनिया में किस तरह की पहल चल रही ह ? जेनेरेटिव एआई में रोजाना होते नए आविष्कार और उसके नेगेटिव साइड इफेक्टस से बचाने के उपाय यानी कायदा-कानून बनाने में बड़ा फासला नहीं है ।

नुकसान से ज्यादा फायदे की चर्चा

यूरोपीय संघ तेजी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े कानून की ओर बढ़ रहा है। अभी तक जो तस्वीर सामने आ रही है उसमें माना जा रहा है कि यूरोपीय संघ के कानून में एआई से जुड़े खतरों की चार कैटेगरी सामने आ सकती हैं। जिसमें कैटेगरी के हिसाब से नियम टूटने पर जुर्माने का प्रावधान होगा। हालांकि, अभी इस कानून को लागू होने में साल भर या उससे अधिक का समय लग सकता है। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि तब तक जेनेरेटिव AI कितना आगे बढ़ चुका होगा। कितनों को आबाद और बर्बाद कर चुका होग। भारत में AI को रेग्युलेट करने के लिए कानून का ड्राफ्ट अगले चार से पांच महीने में जारी होना तय माना जा रहा है, लेकिन एक बड़ा ये भी है कि दुनिया में एआई से होनेवाले नुकसान से ज्यादा फायदे की चर्चा हो रही है।

इंसान की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए

अगले साल तक दुनिया में AI सॉफ्टवेयर बाजार से 126 बिलियन डॉलर कमाई का अनुमान है। एआई के फायदे को देखते हुए 37 फीसदी संगठनों ने इसे किसी न किसी रूप में अपनाया है। कंपनियां एआई की मदद से तेजी से ग्राहकों तक पहुंच रही है और कारोबार तेजी से बढ़ा रही हैं। दुनिया भर में AI को अलग-अलग नजरों से देखा जा रहा है। कोई इसे लोगों की जिंदगी और आसान बनाने वाली तकनीक के रूप में देख रहा है तो कोई बड़े खतरे के रूप में। ऐसे में हमें सुनिश्चित करना होगा कि जीत इंसानी होशियारी की हो Artificial Intelligence की नहीं। AI का इस्तेमाल इंसान की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए हो, ना की राहों में मुश्किलें पैदा करने के लिए। ये भी पढ़ें: ‘मिशन 400+’ में कहां फूल-कहां कांटे, दक्षिण की हवा पानी में क्यों नहीं खिल रहा कमल?  ये भी पढ़ें: अयोध्या विवाद में कैसे दर्ज हुआ पहला मुकदमा, आधी रात को मूर्तियों के प्रकट होने की क्या है कहानी? 

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