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लोकतंत्र के लिए ‘डीपफेक’ किस तरह बना बड़ा खतरा, चुनावी प्रक्रिया को कैसे करने लगा प्रभावित?

Bharat Ek Soch: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से खतरे भी बढ़ गए हैं। यह आने वाले समय में चुनावी प्रक्रिया को किस तरह प्रभावित कर सकता है? वोटिंग से पहले 'डीपफेक' पूरा समीकरण कैसे पलट सकता है? सोशल मीडिया पर कैसे होगी 'असली-नकली' की पहचान? इसी को लेकर हमारे खास कार्यक्रम में चर्चा करेंगे।

Anurradha Prasad

Bharat Ek Soch: भारत में चुनाव हर पांच साल के बाद होता है। चुनावी प्रक्रिया में किसी भी उम्मीदवार की जीत- हार में तीन चीजें अहम भूमिका निभाती हैं- चर्चा, पर्चा और खर्चा। चर्चा यानी नैरेटिव, पर्चा यानी प्रचार और खर्चा यानी फंड। पिछले 15 वर्षों में चुनाव प्रचार का तौर-तरीका बहुत तेजी से बदला है। देश में वोटरों की संख्या करीब 95 करोड़ के आसपास है। वहीं, स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की तादाद 75 करोड़ के करीब है। जिसमें से 46 करोड़ लोग सोशल मीडिया के किसी-न-किसी प्लेटफॉर्म पर एक्टिव हैं। लोग जिस रफ्तार से डिजिटली जुड़े हैं। उसी रफ्तार से राजनीतिक दलों ने भी खुद को लोगों से जुड़ने के लिए तकनीक के रास्ते को आजमाया है।

आवाज की नकल बनाई जा सकती है

दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में वोटरों को प्रभावित करने का काम एआई और सोशल मीडिया के जरिए हो रहा है। एक समय में कोई नेता तकनीक की मदद से वर्चुअली लाखों लोगों के बीच पहुंच सकता है। कुछ हफ्ते पहले की बात है अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में वोटिंग से ठीक पहले लोगों तक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की आवाज पहुंची जिसमें वो कहते सुने गए कि डेमोक्रेट्स घर पर रहें यानी चुनाव में हिस्सा न लें। न्यू हैम्पशायर के लोगों को हैरानी हुई कि आखिर जो बाइडेन ऐसी बात क्यों कह रहे हैं? लेकिन, हकीकत ये थी कि जो बाइडन ने ऐसी कोई बात कही नहीं थी। डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर प्रेसिडेंट जो बाइडन की फर्जी आवाज तैयार की गई थी। आज की तारीख में ऐसे कई एआई टूल मौजूद हैं। जिनकी मदद से किसी का भी फर्जी वीडियो तैयार किया जा सकता है। आवाज की नकल बनाई जा सकती है। ऐसे में चुनाव के दौरान डीपफेक का इस्तेमाल किसी की छवि बनाने और किसी की बिगाड़ने में हो सकता है।

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डीपफेक का चुनावों में गलत इस्तेमाल

टेक कंपनियां भी अच्छी तरह समझ रही हैं कि डीपफेक तकनीक का चुनावों में किस तरह से गलत इस्तेमाल हो सकता है। ऐसे में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग को रोकने के लिए गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, मेटा, ओपन एआई जैसी कंपनियों ने तैयारी की है। सूचनाओं के समंदर से गलत खबर या डीपफेक वीडियो की पहचान टेक कंपनियां किस तरह करेंगी, अभी ये साफ नहीं है। भारत में चुनाव आयोग भी सोशल मीडिया को ट्रैक करने के लिए एआई का इस्तेमाल करने वाला है। जिससे चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ गलत इस्तेमाल न किया जा सके।

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आपत्तिजनक वीडियो वोटरों में वायरल

जिस तरह से कोई भी एआई टूल्स की मदद से किसी भी शख्स आसानी से डीपफेक तैयार कर ले रहा है। उससे हमारे देश में नेताओं की सांस फूली हुई है। लोगों को डर सता रहा है कि कहीं कोई वर्षों की बनाई इमेज डीपफेक के जरिए खराब न कर दे। हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने में लोग अपने विधायक, सांसद और मंत्रियों से बड़ी उम्मीद रखते हैं। नेताओं का एक भी उल्टा-सीधा बयान पूरा खेल पलटने के लिए काफी होता है। ऐसे में अगर चुनाव के दौरान डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल कर विरोधी पक्ष के उम्मीदवार का कोई आपत्तिजनक वीडियो वोटरों में वायरल कर दिया जाता है या उल्टा-सीधा बयान के साथ चेहरा बदल दिया जाता है। तो क्या होगा? झूठा और फर्जी वीडियो लोगों के बीच किस रफ्तार से वायरल होता है। ये भी किसी से छिपा नहीं है। कहा जाता है कि जब तक सच घर से बाहर निकलता है। झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है। ऐसे में डीपफेक के जरिए चुनाव में विरोधी पक्ष की छवि खराब करने की रेस जोर पकड़ सकती है ।

दुनिया की बैंकिंग सिस्टम का बड़ा हिस्सा डिजिटली ऑपरेट हो रहा है

ऐसा नहीं है कि एआई तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ किसी की इमेज खराब करने के लिए ही हो सकता है। एआई की मदद से वोटरों को ज्यादा से ज्यादा मतदान के लिए प्रेरित किया जा सकता है। सरकार के Performance की पूरी जानकारी भी दी जा सकती है। एआई की मदद से वोटरों की पसंद-नापसंद के ट्रेंड को समझा जा सकता है। भविष्य में एआई के खतरों को लेकर बहुत ही मुखर तरीके से आवाज उठाते रहे हैं। इजराइल के युवा इतिहासकार युआल नोआ हरारी...इनकी सोच है कि दुनिया के फाइनेंशियल सिस्टम को एआई बर्बाद कर सकता है। मौजूदा समय में दुनिया की बैंकिंग सिस्टम का बड़ा हिस्सा डिजिटली ऑपरेट हो रहा है। ऐसे में हरारी की सोच है कि खुद फैसला लेने में सक्षम जेनरेटिव एआई एक ऐसा वित्तीय तंत्र बना सकता है। जिसे समझना लोगों के लिए बहुत मुश्किल होगा और जो इंसान द्वारा बनाई गई वित्तीय व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की रेंज में सबसे ज्यादा युवा वर्ग

किसी भी सरकार का काम होता है लोगों की जिंदगी को आसान बनाना। लोगों की जिंदगी आसान बनाने में रुपये की अहम भूमिका होती है और कोई भी Financial System चलता है आपसी भरोसs से। ऐसे में वित्तीय व्यवस्था को एआई के किसी भी संभावित खतरे से बचाने की बड़ी चुनौती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर मौजूद Content का सबसे ज्यादा इस्तेमाल युवा वर्ग करता है। उसमें भी खासतौर से 20 से 35 साल तक के बीच का युवा मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की रेंज में सबसे ज्यादा युवा वर्ग है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में सामने आया कि भारत में 54 फीसदी लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल सही जानकारी के लिए करते हैं।

चर्चित एक्ट्रेस डीपफेक का शिकार हुईं

देश की बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई जानकारी पर भरोसा करती है। लाइक और शेयर करने में खुद को सोशली एक्टिव महसूस करती है। हाल में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी डीपफेक वीडियो की कुछ शिकायतें आईं। बॉलीवुड की कुछ चर्चित हीरोइनें भी डीपफेक का शिकार बन चुकी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इससे बचने का रास्ता क्या है? क्या हमारे देश में डीपफेक के खतरे से बचाव के लिए कानूनी कवच मौजूद है? दुनिया के दूसरे देश इस खतरे से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं?

चुस्त-दुरुस्त मैकेनिज्म होना चाहिए

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से पूरी दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव की भविष्यवाणी की जा रही है। इसे महसूस भी किया जा रहा है। वहीं, जेनरेटिव एआई किस हद तक इंसानों द्वारा बनाई व्यवस्था को बदल और बर्बाद कर सकता है, इसे लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। खतरे के बादल चुनावी प्रक्रिया और लोकतंत्र पर भी महसूस किए जा रहे हैं। ऐसे में AI और डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त कायदा-कानून जरूरी है। लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया एआई, डीपफेक और सोशल मीडिया के दुरुपयोग से मुक्त रहे। इसका भी एक चुस्त-दुरुस्त मैकेनिज्म होना चाहिए।

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