प्राण प्रतिष्ठा किसे कहते हैं?
देवी-देवताओं की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। प्राण के बिना किसी भी चीज का अस्तित्व नहीं है। दूसरे अर्थों में इसे ऐसा समझा जा सकता है मनुष्य शरीर का अस्तित्व भी तभी है, जब तक की उसमें प्राण है। पेड़-पौधे ही तभी तक हरे-भरे नजर आते हैं, जब तक उसमें प्राण है। किसी भी मूर्ति में जब वैदिक मत्रों के उच्चारण और खास विधि द्वारा उसमें प्राण को प्रतिष्ठित (स्थापित) किया जाता है तो उसे 'प्राण प्रतिष्ठा' कहते हैं। कहा जाता है कि अगर किसी मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होगी तब तक उसका अस्तित्व नहीं है। यानी जब विधिवत मूर्ति में प्रतिष्ठा की जाती है तभी उसकी पूजा से लाभ प्राप्त होता है। यही वजह है कि मंदिरों में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होने पर क्या होगा?
पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने इस संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनके मुताबिक, मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा ना होने पर उसमें भूत, प्रेत, पिशाच इत्यादि नकारात्मक शक्तियों का वास हो जाएगा। ऐसे में पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है कि घर में एक बल्व टंगा है और वह तब तक प्रकाश नहीं देता जब तक कि इसमें विद्युत रूपी प्राण को ना डाला जाए।प्राण प्रतिष्ठा के लिए जरूरी बातें
मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा शुभ नक्षत्र-ग्रह, तिथि, वार, समय, मंत्र, पुरोहित (पंडित), यजमान इत्यादि को ध्यान में रखकर किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि शुभ समय में किए गए कार्यों का फल भी शुभ ही प्राप्त होता है। यही वजह है कि सनातन परंपरा में किसी भी कार्य को करने के लिए शुभता का ध्यान रखा जाता है। यह भी पढ़ें: जगन्नाथ मंदिर के 5 बड़े रहस्य, जहां अब शॉर्ट्स और स्कर्ट्स में जाना हुआ निषेध
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।