Chhath Puja 2022: संतान की मनोकामना पूरी करती हैं छठी मईया, ये है व्रत कथा
Chhath Puja 2022: चार दिनों तक चलने वाले आस्था के महापर्व छठ पूजा की देशभर में तैयारियां जोरों पर है। आज छठ पूजा का तीसरा दिन है। आज शाम में डूबते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा। जबकि कल सोमवार को उगते हुए सूर्य का अर्घ्य दिया जाएगा। इससे पहले शुक्रवार को छठ पूजा का पहला दिन यानी नहाय खाय था, इसके बाद शनिवार को दूसरा दिन यानी खरना था।
चार दिनों तक चलने वाले इस व्रत का विधि विधान किसी भी और व्रत के मुकाबले काफी कठिन होती है। छठ करने वाली व्रती को चार दिनों तक कड़ा उपवास करना होता है। माना जाता है कि पूरे विधि विधान से छठ पूजा करने वाले को छठी मैया मनचाहा वरदान देती हैं।
मान्यता है कि छठी मइया भगवान सूर्य की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हुए गंगा-यमुना या कोई और नदी या पोखर के किनारे ये पूजा की जाती है। माना जाता है कि छठी मइया बच्चों की रक्षा करती है इसलिए जो भी व्रती इस व्रत को करता है उसकी संतान की उम्र लंबी होती है।
मार्कण्डेय पुराण में इस बात का जिक्र है कि सृष्टि की अधिष्ठात्रि देवी प्रकृति ने खुद को 6 भागों में बांटा हुआ है और इसके छठे अंश को मातृ देवी के रूप में पूजा जाता है जो भगवान ब्रम्हा की मानस पुत्री हैं। बच्चे के जन्म के 6 दिन बाद भी छठी मइया की पूजा की जाती है और उनसे प्रार्थना की जाती है कि वो बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घ आयु का वरदान दें।
आइये जानते हैं छठ पूजा की क्या है कहानी
कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम के एक राजा थे और उनकी पत्नी मालिनी थी। राजा को कोई संतान नहीं थी जिसकी वजह से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी रहते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया।
इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं लेकिन 9 महीने बाद रानी को मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ। जब ये खबर राजा तक पहुंची तो वो इतना दुखी हुए कि आत्महत्या का मन बना लिया। राजा ने जैसे ही आत्महत्या की कोशिश की वैसे ही उनके सामने एक देवी प्रकट हुईं।
देवी ने राजा से कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं और मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। देवी ने राजा से कहा कि अगर तुम सच्चे मन से मेरी पूजा करते हो तो मैं तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूरी करूंगी और तुम्हें पुत्र रत्न दूंगी। राजा ने देवी के कहे अनुसार उनकी पूजा की।
राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को पूरे विधि विधान से देवी षष्ठी की पूजा की और उसके फलस्वरूप उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से छठ पर्व मनाया जाने लगा। छठ पर्व को लेकर एक और कथा कही जाती है और वो ये कि जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए तो द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया।
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