Chanakya Niti: खतरनाक है ऐसी लड़की से शादी करना, इसके पीछे की वजह जानकर हो जाएंगे हैरान
Chanakya Niti
Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य अपने नीति शास्त्र में कई ऐसी गूढ़ बातें और नीतियां बताई हैं जो आज के समाज के लिए दर्पण और उपयोगी है। चाणक्य ने अपनी नीतिय में बड़ों, बुजुर्गों, बच्चों सभी के लिए कोई न कोई सीख दी है। जिस पर अमल कर आदमी अपने जीवन को संवार सकता है। आज हम आपको चाणक्य की वे गूढ़ बातें बताते हैं, जिनका पालन कर आप भी अपने घर को सुख-समृद्धि से भर सकते हैं।
आचार्य चाणक्य की नीति भले ही कठोर क्यों न हो लेकिन उनमें जीवन की सच्चाईयां छिपी हुई होती हैं। चाणक्य नीति के मुताबिक शादी को लेकर पुरुष के साथ-साथ स्त्री पक्ष को भी सर्तक रहना चाहिए और काफी विचार विमर्श के बाद ही कोई अंतिम फैसला करना चाहिए।
शादी को लेकर चाणक्य की बड़ी बातें (Chankya Niti About Marriage)
- आचार्य चाणक्य ने अपनी पुस्तक चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के 14वें श्लोक में लिखा है कि बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुई कुरूप अर्थात् सौंदर्यहीन कन्या से भी विवाह कर ले, परन्तु नीच कुल में उत्पन्न हुई सुंदर कन्या से विवाह न करे। वैसे भी विवाह अपने समान कुल में ही करना चाहिए।
- आचार्य चाणक्य का कहना है कि शादी-विवाह के लिए लोग सुंदर कन्या देखने के चक्कर में कन्या गुण और उसके कुल की अनदेखी कर देते हैं। ऐसी कन्या से विवाह करना सदा ही दुखदायी होता है, क्योंकि नीच कुल की कन्या के संस्कार भी नीच ही होंगे। उसके सोचने, बातचीत करने या उठने-बैठने का स्तर भी निम्न होगा। जबकि उच्च और श्रेष्ठ कुल की कन्या का आचरण अपने कुल के मुताबिक होगा, भले ही वह कन्या कुरूप और सौंदर्यहीन ही क्यों न हो।
- आचार्य चाणक्य के मुताबिक ऊंचे कुल की कन्या अपने कामों से अपने कुल का मान बढ़ाएगी, जबकि नीच कुल की कन्या तो अपने व्यवहार से परिवार की प्रतिष्ठा कम करेगी। वैसे भी विवाह सदा अपने समान कुल में ही करना उचित होता है, अपने से नीच कुल में नहीं। यहां 'कुल' का मतलब धन-संपत्ति से नहीं बल्कि परिवार के चरित्र से है।
- चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के 16वें श्लोक के मुताबिक विष में भी यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना अच्छा होता है। अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओं में भी यदि सोना अथवा मूल्यवान वस्तु पड़ी हो तो वह भी उठा लेने के योग्य होती है। यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला अथवा गुण है तो उसे सीखने में कोई हानि नहीं। इसी प्रकार दुष्ट कुल में उत्पन्न अच्छे गुणों से युक्त स्त्री रूपी रत्न को ग्रहण कर लेना चाहिए।
- इस श्लोक में आचार्य गुण ग्रहण करने की बात कर रहे हैं। यदि किसी नीच व्यक्ति के पास कोई उत्तम गुण अथवा विद्या है तो वह विद्या उससे सीख लेनी चाहिए अर्थात व्यक्ति को सदैव इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि जहां से उसे किसी अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो, अच्छे गुणों और कला को सीखने का अवसर प्राप्त हो तो उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। विष में अमृत और गंदगी में सोने से तात्पर्य नीच के पास गुण से है।
- जबकि एक अन्य श्लोक में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार अर्थात भोजन दोगुना होता है, बुद्धि चौगुनी, साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होती है। आचार्य ने इस श्लोक द्वारा स्त्री की कई विशेषताओं को उजागर किया है। स्त्री के ये ऐसे पक्ष हैं, जिन पर सामान्य रूप से लोगों की दृष्टि नहीं जाती।
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