भीष्म पंचक का महत्व
पौराणिक ग्रंथों में भीष्म पंचक का संबंध भीष्म पितामह से बताया गया है। कहते हैं कि जब महाभारत युद्ध के बाद जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे, उस वक्त भगवान श्रीकृष्ण भी पांडवों के साथ उनके समक्ष गए। वहां जाकर उन्होंने पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। कहते हैं कि उस समय भीष्म पितामह श्रीकृष्ण समेत पांडवों को पांच दिनों तक राजधर्म से लेकर मोक्ष तक का उपदेश दिया था। भीष्म पितामह के उपदेश को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण को भी प्रसन्नता हुई। कहते हैं कि इसके बाद से ही भीष्म पंचक का व्रत रखा जाने लगा। यह भी पढ़ें: कार्तिक मास में कब है गंगा स्नान? जरूर करें एक चीज का दान, घर में आएगी सुख-समृद्धिभीष्म पंचक से जुड़े जरूरी नियम
मान्यतानुसार, भीष्म पंचक की अवधि में 5 दिनों तक पूर्णतः ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। भीष्म पंचक के दौरान अन्न त्यागने की परंपरा है। इस दौरान फलहार करना शुभ माना गया है। ऐसे में भीष्म पंचक के दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए। भीष्म पंचक की पूरी अवधि में नियमित तौर पर तुलसी में जल अर्पित करना और उसके नीचे घी का दीपक जलाना शुभ माना गया है। भीष्म पंचक के दौरान पीपल की रोजना पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही उनके निमित्त तर्पण भी करना चाहिए। भीष्म पंचक में 5 दिनों तक पूजा स्थान पर अखंड ज्योति जलाकर गीता का पाठ करना चाहिए। ऐसा करना शुभ माना गया है। भीष्म पंचक यानी कार्तिक पूर्णिमा के दिन सपरिवार हवन करना चाहिए। साथ ही साथ घर में सत्यनारायण भगवान की कथा करनी चाहिए।
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