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कूटनीति के चलते INDIA गठबंधन ध्वस्त, नीतीश की एनडीए में वापसी ने लगाई मुहर

आपातकालीन के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस के लिए स्थिति इतनी खराब नहीं थी, जितनी आज के समय में है।

Edited By : Amit Kumar | Updated: Jan 28, 2024 10:07
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Subhash Dhal

सुभाष ढल

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने जा रही है। इस बात का द्योतक है कि इंडिया गठबंधन बिखर चुका है। जिस जोश के साथ इस गठबंधन का शुभारंभ हुआ था अपने स्वार्थ की खातिर उसी जोश के साथ यह गठबंधन धराशायी हो गया। बिल्ली के गले में घंटी बांधने चले थे। तो मुंह के बल गिरने ही थे।

1977 की छठवीं लोकसभा में आपातकाल के गर्भ से पैदा हुई जनता पार्टी की अप्रत्याशित सफलता से कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। करीब 41% वोट पाकर भारतीय लोक दल (जनता पार्टी) 295 सीटों पर काबिज हुई और उत्तर भारत में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। कांग्रेस की स्थिति उसे समय भी इतनी दयनीय नहीं थी जितनी आज है। विपरीत परिस्थितियों में भी कांग्रेस को लोकसभा में 154 सीटें मिली थी, जो एक सशक्त राजनीतिक दल के लिए पर्याप्त थी।

इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी के बारे में कहा था कि यह एक नारंगी की तरह है जो देखने में ऊपर से एक है और अंदर से अलग-अलग हैं और उसका परिणाम यही हुआ की ढाई साल के भीतर जनता पार्टी धराशाई हो गई और इंदिरा गांधी की अप्रत्याशित वापसी हुई। ठीक इसी प्रकार से नरेंद्र मोदी की ताकत को कमजोर करने के लिए INDIA गठबंधन का गठन हुआ। कई बैठकें हुई। एनडीए के विरुद्ध विकल्प का उद्घोष हुआ। सभी बैठक चाय पानी पर ही निपट गई कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया।

कांग्रेस अपनी कूटनीति के चलते सभी को सहेज कर रख नहीं पाई। नतीजा यह हुआ कि पश्चिम बंगाल से ममता के तेवर, दिल्ली और पंजाब से आम आदमी के तेवर और इस गठबंधन के प्रमुख योजनाकार नीतीश कुमार द्वारा एनडीए में चले जाना, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव द्वारा कांग्रेस को उसकी हैसियत है ठीक उसी तरह से बताना जैसी समाजवादी पार्टी की हैसियत मध्यप्रदेश के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने दिखाई थी। यदि यह कहा जाए कि कांग्रेस 2019 की अपने संख्या बल को भी नहीं छु पाएगी तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। सत्ता में आने की बात तो दूर की कौड़ी है। कांग्रेस को हाशिये पर लाने का काम एनडीए ने नहीं वरन कथित इंडिया गठबंधन ने ही पूरा कर दिया।

यह सिद्ध हुआ कि यह एक ऐसा गठबंधन है जो अपने मुकाम पर पहुंचने से पहले ही धराशायी हो गया। इसका मूल कारण यह रहा कि कांग्रेस जिन राज्यों में अपना जन आधार खो चुकी थी उन राज्यों के क्षत्रपों के साथ मिलकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहती थी जिसका सीधा अर्थ था कि छत्रपों की ताकत कम होना। ऐसा काम तो वही कर सकता है जिसने आत्महत्या का मन बना लिया हो पर राजनीतिक घाघों के सामने कांग्रेस की सभी चालें नाकामयाब हुई। क्षेत्रीय छत्रपों के सामने कांग्रेस की नहीं चली कथित गठबंधन और एनडीए के सामने सामने खड़े थे राजनीति के धुरंधर नरेंद्र मोदी और अमित शाह।
राम मंदिर के निर्माण ने भारतीय जनता पार्टी को ऐसी ऑक्सीजन दी पूरा देश राममय हो गया। मंदिर का निर्माण क्या हुआ एक राजनीतिक हिंदुत्व की हवा आंधी में बदल गई। जिन्हें राम के नाम से आपत्ति थी वह भी राममय हो गए। मोदी के इस पुरुषार्थ के सामने राम का नाम लेना इन कथित धर्मनिरपेक्ष वादियों की विवशता हो गई। ऐसे वक्त पर जब कांग्रेस को इंडिया गठबंधन को सशक्त बनाने की दिशा में काम करना था, राहुल पदयात्रा पर निकल कर गए, उन्हें लगा कि इसके जरिए वह केंद्र की सत्ता में काबिज हो जाएंगे। कुल मिलाकर यह कहा जाए के इंडिया गठबंधन धोखा था एक फरेब था और सत्ता को पाने की ललक में स्वयं के स्वार्थ ने ऐसा घेरा की गठबंधन की धज्जियां उड़ गई।

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दूसरी ओर कांग्रेस का दिन प्रतिदिन गिरते हुए ग्राफ में क्षेत्रीय छत्रप भी कांग्रेस को ऑक्सीजन देकर स्वयं को संकट में नहीं डालना चाहते थे। उदाहरण के लिए दिल्ली और पंजाब में केजरीवाल के लिए कांग्रेस को साथ लेने का अर्थ आत्महत्या के समान था ठीक उसी प्रकार से ममता बनर्जी का और अखिलेश यादव का आज स्थिति भी ऐसी ही थी। पूरा विपक्ष नरेंद्र मोदी के सामने बौना हो गया। राजनीतिक विश्लेषक इस बात को मानते हैं यदि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की घर वापसी हो जाए और पंजाब के अंदर अकाली दल से कोई समझौता हो जाता है तो 2014 और 2019 के रिकॉर्ड को तोड़ने में नरेंद्र मोदी को कोई विशेष दिक्कत नहीं आएगी। राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की स्थिति अत्यंत दयनीय है। नरेंद्र मोदी के कद के सामने अब कुछ भी संभव नहीं लग रहा है।
चुनावी वर्ष में देखो ऊंट किस करवट बदलता है यह समय बताएगा पर वर्तमान में एनडीए गठबंधन अत्यन्त सशक्तता की ओर बढ़ रहा है।

First published on: Jan 28, 2024 10:04 AM

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