ये सच्चाई जानकर मछली खाना छोड़ देंगे आप! नए शोध ने चौंकाया
मछली पर हुए शोध में नई जानकारी निकल कर सामने आई है। फाइल फोटो
New research on Fish Behaviour: क्या मछलियों में भी फीलिंग्स होती है? क्या वे दर्द को महसूस करती हैं? क्या उनमें खुद को पहचानने की क्षमता होती है? इन सारे सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद बढ़ गई है। दरअसल सिडनी स्थित मैक्युअरी (Macquarie) यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कुलुम ब्राउन ने अपने शोध के जरिए यह साबित किया है कि मछलियों में खुद को पहचानने की क्षमता होती है। प्रोफेसर ब्राउन ने कहा कि मछलियां शीशे में खुद को पहचानती हैं।
वहीं ओसाका यूनिवर्सिटी के अध्ययन में पाया गया है कि एनेस्थेशिया के डोज के बाद जब मछलियों को होश आया तो उन्होंने शीशे में खुद को निहारा और गले के नीचे पड़े निशान को पहचान कर उसे मिटाने की कोशिश की। इसके लिए मछलियों ने खुद को पत्थरों पर रगड़ा। मिरर सेल्फ रिकॉग्निशन टेस्ट की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। प्रोफेसर ब्राउन मछलियों के व्यवहार और इंटेलिजेंस पर अध्ययन करते हैं।
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'जानवरों में भी होती है संवेदना'
इससे पहले कई स्तनधारी, हाथी और डॉल्फिन्स ने यह टेस्ट पास किया है। हालांकि मछलियों में मिरर टेस्ट का नतीजा इस तरह विवादास्पद रहा कि इस शोधपत्र को प्रकाशित होने में पांच साल का वक्त लग गया। बता दें कि दुनिया भर में मछलियाँ सबसे ज़्यादा खाई जाने वाली जानवर हैं। अनुमान है कि हर साल 1.1-2.2 ट्रिलियन टन मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। वे सबसे पालतू जानवर भी हैं, विज्ञान और चिकित्सा अनुसंधान में इस्तेमाल किए जाने वाले मुख्य जानवरों में से भी एक हैं। फिर भी ज़्यादातर लोग उन्हें जानवर भी नहीं मानते।
हाल के दशकों में शोध में यह साबित हो गया है कि कुछ जानवरों में सीखने, समझने और दर्द को महसूस करने की क्षमता होती है। साथ ही वे रिश्ता भी कायम करने की संवेदना रखते हैं। ये सारी खूबियां एक जानवर की संवेदना को बयान करते हैं।
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मछलियों को भी होता है दर्द
वाइकातो यूनिवर्सिटी में फिश इकोलॉजिस्ट प्रोफेसर निक लिंग ने कहा कि मछलियां दर्द महसूस कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि रेनबो ट्राउट जैसी मछलियों को अगर मधुमक्खियों के जहर का इंजेक्शन दें तो उनकी सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाती है और वे खुद को चट्टानों से रगड़ने लगती हैं। उन्होंने कहा कि शॉर्क में नोसिसेप्टर्स नहीं होते हैं, इसलिए उन्हें दर्द का एहसास नहीं होता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाए।
प्रोफेसर लिंग ने कहा कि मछलियों की प्रजाातियां बहुत विविध हैं। इसलिए सामान्यीकरण से बचना चाहिए। न्यूजीलैंड के कैंटरबरी यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजिस्ट डॉ माइकल फिलिप ने कहा कि मछलियों के प्रति लोगों का व्यवहार खुद की समझ के मुताबिक होता है। उन्होंने कहा कि जब जानवरों को फूड और प्रायोगिक जानवर में बांट दिया जाता है तो लोग उनकी संवेदनाओं की परवाह नहीं करते हैं।
दुनिया भर में बहुत सारे देश मछलियों को संवेदना वाले प्राणियों के तौर पर मान्यता देने लगे हैं। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलियन कैपिटल टेरेटरी ने मछलियों को संवेदना वाले जानवरों के तौर पर मान्यता दी है। प्रोफेसर ब्राउन कहते हैं कि आप मछली से अन्य जानवरों की तरह व्यवहार कर सकते हैं, जैसे कि आप गाय, बिल्ली, कुत्ता और चिड़ियों के साथ करते हैं।
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