क्या बांग्लादेश में राष्ट्रगान-फ्लैग भी बदलेंगे? भारत के कनेक्शन पर यूनुस सरकार ने दिया बड़ा बयान
मोहम्मद यूनुस और पीएम मोदी। (File Photo)
Bangladesh News : बांग्लादेश में राजनीतिक उथलपुथल के बाद अब राष्ट्रगान और फ्लैग बदलने की मांग उठने लगी है। इसे लेकर लोग सड़कों पर उतर आए। विरोध प्रदर्शन कर रहे संगठनों का कहना है कि यह भारत द्वारा उन पर थोपा गया है। बांग्लादेश के राष्ट्रगान से भारत के कनेक्शन पर कुछ संगठनों ने आपत्ति जताई है। इसे लेकर मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने बड़ा बयान दिया है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने कहा कि देश के राष्ट्रगान को बदलने की उसकी कोई योजना नहीं है। कुछ दिन पहले एक पूर्व सैन्यकर्मी ने कहा था कि 'आमार सोनार बांग्ला' राष्ट्रगान भारत द्वारा 1971 में थोपा गया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने इस राष्ट्रगान को लिखा था। बांग्लादेश के धार्मिक मामलों के सलाहकार एएफएम खालिद हुसैन ने कहा कि मोहम्मद यूनुस सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं लेगी, जिससे विवाद पैदा हो।
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जानें कहां से उठा यह मुद्दा?
आपको बता दें कि बांग्लादेश के प्रमुख सांस्कृतिक संगठन उदिची शिल्पीगोष्ठी ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें राष्ट्रगान और ध्वज बदलने की मांग के बीच एक साथ राष्ट्रगान गाया गया और राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया गया। राष्ट्रगान के साथ-साथ देशभक्ति गीत भी गाए गए। राष्ट्रगान को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब कुछ लोगों ने तर्क दिया कि यह स्वतंत्र बांग्लादेश की पहचान के साथ मेल नहीं खाता है।
ये बांग्लादेश का राष्ट्रगान कैसे बन सकता है?
बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के पूर्व अमीर गुलाम आजमी के बेटे अब्दुल्लाह अमान आजमी ने कहा कि मौजूदा राष्ट्रगान देश के अस्तित्व के विपरीत है, जो 1971 में आजाद हुआ था। उन्होंने कहा कि दो बंगालों को एकजुट करने के लिए बनाया गया राष्ट्रगान एक स्वतंत्र बांग्लादेश का राष्ट्रगान कैसे बन सकता है? साल 1971 में भारत ने उनके देश पर यह राष्ट्रगान थोपा था। ऐसे कई गीत हैं, जो राष्ट्रगान बन सकते हैं। सरकार को एक नया राष्ट्रगान चुनने के लिए एक नया आयोग बनाना चाहिए।
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नए राष्ट्रगान की उठी मांग
बांग्लादेश के पूर्व ब्रिगेडियर जनरल ने भी एक नए राष्ट्रगान की मांग की है। उन्होंने कहा कि देश का राष्ट्रगान ऐसा हो, जो राष्ट्र की पहचान और मूल्यों को दर्शाता हो। उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक सुधारों का भी तर्क दिया कि कानून इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप हों।
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