महालक्ष्मी व्रत के दौरान जरूर करें ये 5 काम, मां लक्ष्मी घर-परिवार हमेशा रखेंगी खुशहाल
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भगवान श्रीराम को चौदह वर्षों का कठोर वनवास मिला था जिसके अनुसार उन्हें सिर्फ जंगलों में ही रहना था। कहते हैं कि श्रीराम ने अपने वचन का भलिभांति पालन किया।
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भगवान श्रीराम
भगवान वनवास के दौरान 14 वर्षों तक अपनी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण के साथ वानवासी की तरह जीवन व्यतीत किया। उस दौरान वे भारत के उतर से लेकर दक्षिण तट तक गए।
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उत्तर से दक्षिण तक का भ्रमण
लेकिन क्या आप जानते हैं कि वनवास के क्रम में 14 वर्षों तक भगवान श्रीराम कहां-कहां समय बिताए थे। अगर नहीं तो चलिए एक-एक कर जानते हैं।
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श्रीराम कहां-कहां बिताए समय
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीराण अयोध्या के विदा लेने के बाद सबसे पहले तमसा नदी के तट पर पहुंचे। जहां पर रात्रि विश्राम करने के बाद वे कोशल देश की नगरी से बाहर निकल गए।
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तमसा नदी के तट पर
तमसा नदी के टत से निकलने के बाद भगवान श्री राम अपने मित्र निषादराज की नगरी श्रृंगवेरपुर के वनों में पहुंचे। जहां पर विश्राम करने के बाद वे माता सीता और लक्ष्मण के साथ केवट से सहारे गंगा को पार किया और कुरई गांव पहुंचे।
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श्रृंगवेरपुर नगरी
गंगा पार करके श्रीराम माता सीता, लक्ष्मण और निषादराज गुह के साथ प्रयाग चले गए। वहां उन्होंने त्रिवेणी की सुंदरता को देखा तथा आगे मुनि भारद्वाज के आश्रम पहुंचे।
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प्रयाग
श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ यमुना पार करके चित्रकूट चले गए। चित्रकूट पहुंचते ही उन्होंने वाल्मीकि आश्रम में उनसे भेंट की और गंगा की धारा मंदाकिनी नदी के किनारे अपनी झोपड़ी बनाकर रहने लगे।
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चित्रकूट
वनवास के दौरान श्रीराम दंडकारण्य के वनों में पहुंचकर सबसे पहले उन्होंने ऋषि अत्री और माता अनुसूया से उनके आश्रम में जाकर भेंट की। माता अनुसूया से माता सीता को कई बहुमूल्य रत्न, आभूषण और वस्त्र प्राप्त हुए।
दंडकारण्य
पंचवटी
श्रीराम गोदावरी नदी के किनारे पंचवटी में अपनी कुटिया बनाकर रहने लगे। जहां उनकी भेंट जटायु से हुई। जटायु उनकी कुटिया की रक्षा में प्रहरी के तौर पर तैनात रहते थे।