भगवान शिव की क्रोध से जन्मा था यह 1 असुर, जिसे महादेव भी नहीं हरा पाए!

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव इंद्रदेव की किसी चाल पर अत्यंत क्रोधित हो गए। ऐसे में उनके क्रोध से संसार भस्म ना हो जाए, इसलिए बृहस्पति देव की विनती पर शिवजी ने अपनी क्रोधाग्नि को समुद्र में डाल दिया।

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जब क्रोधित हुए शिवजी

कहते हैं कि इससे एक बालक की उत्पत्ति हुई। बच्चे के रोने की आवाज इतनी तेज थी कि उसे सुनकर सम्पूर्ण संसार बहरा हो गया। 

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शिवजी के क्रोध से हुई बालक की उत्पत्ति

जिसके बाद बह्मा जी ने बालक का नाम जलंधर रखा। जलंधर जब बड़ा हुआ, तो उसका विवाह वृंदा के साथ हुआ जो बेहद पतिव्रता थी और जलंधर की शक्ति का कारण भी। 

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बालक का नाम रखा जलंधर

वृंदा भी एक असुर की पुत्री थी लेकिन वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी। जलंधर असुरों का शासक बना। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण देवता भी जलंधर से जीत नहीं सकते थे।

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वृंदा थी असुर की पुत्री

जलंधर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए संसार में आतंक मचाने लगा था। वह देवताओं की पत्नियों को भी सताने लगा था जिसमें भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी भी थी। 

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जलंधर मचाने लगा आतंक

जलंधर का आतंक दिनोंदिन बढ़ता ही गया। अब वह पार्वती जी को अपने अधीन करना चाहता था। इस कारण शिवजी उस पर अत्यंत क्रोधित हो गए और दोनों के बीच भयंकर युद्ध होने लगा। 

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शिवजी और जलंधर के बीच हुआ युद्ध

लेकिन जलंधर की शक्ति के कारण महादेव उसे हरा नहीं पा रहे थे। जलंधर की हार तभी संभव था जब उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग होता। वृंदा का पतिव्रता धर्म भ्रष्ट करने भगवान विष्णु जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे। 

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भगवान विष्णु ने लिया जलंधर का रूप

वृंदा को लगा कि ये जलंधर है और वह भगवान विष्णु संग पति जलंधर जैसा व्यवहार करने लगी। इस प्रकार वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और महादेव जलंधर का वध कर सके।

वृंदा का पतिव्रत हुआ भंग

भगवान विष्णु द्वारा पतिव्रता धर्म भ्रष्ट होने के कारण वृंदा ने आत्मदाह कर लिया और उसकी राख के ऊपर तुलसी पौधे का जन्म हुआ। इस प्रकार वृंदा आज के युग में तुलसी के रूप में जानी जाती है।

वृंदा बनी तुलसी