सनातन धर्म में क्यों पहनते हैं जनेऊ, जानें धारण करने के नियम और महत्व

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जनेऊ सनातन धर्म की पहचान होती है, साथ ही जनेऊ धारण करने से द्विज बालक को यज्ञ और स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

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जनेऊ का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मल-मूत्र विसर्जन करने के दौरान जातक को जनेऊ को दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए। साथ ही हाथ को धोकर ही उतारना चाहिए।

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जनेऊ धारण का नियम

मान्यता है कि जनेऊ कमर से ऊपर ही होना चाहिए साथ ही इसका कोई धागा नहीं टूटा होना चाहिए। साथ ही एक जनेऊ को 6 माह से अधिक समय तक नहीं पहनना चाहिए।

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6 माह में बदलें

शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के घर में जन्म या मरण होता है तो उस समय जनेऊ उतार देना चाहिए।

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जन्म-मरण के समय जनेऊ को बदल दें

मान्यता है कि जो जातक एक बार जनेऊ धारण करता है, उसे बाहर नहीं निकाला जाता है। बाहर निकालने से जनेऊ अशुद्ध हो जाता है। इसलिए निकालने के बाद आपको जनेऊ बदल लेनी चाहिए।

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शरीर से बाहर न निकाले जनेऊ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कोई बालक इन सभी नियमों का पालन करने योग्य हो जाते हैं, तभी उन्हें यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।

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यज्ञोपवीत संस्कार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जो जातक जनेऊ धारण करता है, उन्हें बार-बार बुरे स्वप्न नहीं आते हैं। साथ ही वैसे सपनों से दूर भी रहते हैं।

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बुरे स्वप्न से बचाव