विद्वानों के अनुसार, महात्मा भरत एक आदर्श और भ्रातृत्व प्रेम की जीते-जागते मूर्ति माने जाते हैं।
मान्यता है कि जब श्रीराम जी वनवास गए उस बीच जीतनी भी बाधाएं आई थी उन बाधाओं को दूर करने में भरत ने अहम भूमिका निभाई थीं।
कहा जाता है कि महात्मा भरत के मन में सुख, ऐश्वर्य की लालसा नहीं थी।
रघुकुल के राज गुरु वशिष्ठ ने भरत के व्यवहार और आदर्शों को देखकर उन्हें महात्मा की उपाधि दी थी।