Amit Kasana
लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है। सालाना बजट में इसके लिए रकम आवंटित की जाती है। चुनाव में ईवीएम, चुनाव आयोग के ऑफिशियल कामकाज, सुरक्षा, वोटर आईडी कार्ड बनाने, मतदाताओं को जागरूक करने आदि कामों पर पैसा खर्च होता है।
भारत को आजादी मिलने के बाद देश में साल 1951-52 में पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे। उस समय इन चुनावों पर कुल 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे।
आजाद भारत में अब तक कुल 16 बार लोकसभा चुनाव करवाए जा चुके हैं। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में 3870.3 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक साल 2019 के चुनाव में करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
चुनाव में साल दर साल खर्च बढ़ता जा रहा है। पहले बैलेट पेपर पर चुनाव होते थे। फिर इसकी जगह ईवीएम मशीनों ने ली। हर साल ईवीएम और मतदाताओं की संख्या बढ़ जाती है। साल 1951-52 में कुल 17.32 करोड़ मतदाता थे। साल 2019 में कुल करीब 91.2 करोड़ मतदाता थे।
साल 2004 से प्रत्येक लोकसभा में ईवीएम पर वोटिंग हो रही है। साल 2019-20 ईवीएम खरीद व रखरखाव के लिए बजट में 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए। जबकि 2023-24 के बजट में यह राशि बढ़कर 1891.8 करोड़ रुपए हो गई।
चुनाव आयोग के अनुसार साल 1951-1952 के लोकसभा चुनाव में 53 पार्टियां चुनाव मैदान में थीं। जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 673 हो गई। इसी तरह साल 1951-1952 में 1874 उम्मीदवार थे 401 सीट पर चुनाव हुए। वहीं, 2019 में यह बढ़कर 8054 उम्मीदवार और 543 सीट तक पहुंच गईं।
देश की पहली लोकसभा का पहला सत्र 13 मई 1952 को शुरू हुआ हुआ था। पहली लोकसभा के अध्यक्ष जीवी मावलंकर थे और इसका कार्यकाल 15 मई 1952 से 27 फरवरी 1956 तक था।