कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी कर्म से दूर नहीं हो सकता। मनुष्य प्रकृति द्वारा दिए गए कर्म को करने के लिए विवश है।
भगवान अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य मन से अपनी कर्म-इंद्रियों को नियंत्रित करता है और कर्म में लगा रहता है, वह श्रेष्ठ है।
ऐसे में मनुष्य को कर्म जरूर करना चाहिए। कर्म को छोड़ देने से शरीर का भरण-पोषण संभव नहीं है।