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Bhopal Gas Tragedy: चंद मिनटों में लग गया था लाशों का ढेर, जानिए उस काली रात की दर्दनाक कहानी

Bhopal Gas Tragedy: देश में जब भी बड़ी घटनाओं का जिक्र होता है, तो भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) सबके जहन में आ जाती है। क्योंकि 1984 में झीलों की नगरी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात चंद मिनटों के अंदर ही लाशों का ढेर लग गया था। सरकारी आंकड़ों के […]

Edited By : Bhoopendra Rai | Updated: Dec 2, 2022 16:12
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Bhopal Gas Tragedy

Bhopal Gas Tragedy: देश में जब भी बड़ी घटनाओं का जिक्र होता है, तो भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) सबके जहन में आ जाती है। क्योंकि 1984 में झीलों की नगरी भोपाल में 2 और 3 दिसंबर की दरमियानी रात चंद मिनटों के अंदर ही लाशों का ढेर लग गया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उस रात 3 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। लेकिन मौतों का दावा इससे कही ज्यादा किया जाता है, जिसके आधिकारिक आंकड़े अभी तक स्पष्ट नहीं हैं।

भोपाल गैस त्रासदी को 38 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस घटना के जख्म भोपालवासियों के जहन में आज भी ताजा है। जानिए उस काली रात में ऐसा क्या हुआ था, जिसे भोपाल आज तक भूल नहीं पाया है।

यूनियन कार्बाइड कंपनी से रिसी थी घातक गैस

आज से करीब 38 साल पहले 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात पूरा भोपाल जब नींद के आगोश में था, उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि दबे पांव मौत उनके नजदीक आ रही है। भोपाल में स्थित यूनियन यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) कंपनी से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था, जिसने चंद मिनटों में ही पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया, इस गैस ने सबसे पहले आस-पास की बस्तियों को अपनी चपेट में लिया गैस इतनी तेज थी कि लोगों को बचने का मौका ही नहीं मिला और कई लोगों की मौत हो गई।

गैस रिसने की वजह से 15 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत होने की बात सामने आई थी, जबकि कई लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए, जो आज भी त्रासदी की मार झेल रहे हैं। यही वजह है कि इस घटना के जख्म आज भी ताजा हैं।

कैसे हुई थी भोपाल गैस त्रासदी की घटना

2 दिसंबर का दिन भोपाल के लिए आम दिनों की तरह ही था, सुबह से देर रात तक शहर अपनी रफ्तार से चला, लेकिन रात में यह रफ्तार थम गई। उस दिन भी हर दिन की तरह अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी अपने समय पर खुली और फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर अपने काम में व्यस्त थे, लेकिन रात के 11 बजे फैक्ट्री से अचानक मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस का रिसाव शुरू हो गया, पूरा शहर नींद में था, गैस तेजी से शहर की तरफ फैलने लगी, आस पास मौजूद बस्तियों में यह गैस फैल गई, जहां किसी की आंखों में तेज जलन हुई तो किसी की सांस फूलने लगी, बुजुर्ग और बीमार लोग तो मौके पर ही दम तोड़ने लगे, देखते ही देखते ही पूरे शहर में हड़कंप मच गया, क्योंकि उस वक्त लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।

करीब 40 टन गैस का हुआ था रिसाव

घटना के कुछ देर बाद लोगों को समझ में आया कि यह गैस यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से रिस रही है, जिसके बाद ही पूरा भोपाल प्रशासन अलर्ट हुआ, बताया जाता है कि उस रात फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से रिसी थी, जो करीब 40 टन थी, बाद में खुलासा हुआ था कि गैस रिसने का कारण फैक्ट्री के प्लांट नंबर 610 के टैंक में भरी जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस में कही से पानी मिल गया था, जिससे गैस का रिसाव शुरू हो गया था। क्योंकि पानी भरने से टैंक में दवाब इतना बना की टैंक खुल गया और उसमें से गैस इतनी तेजी से निकलनी शुरू हुई कि हवा के झोंके के साथ वह तेजी से शहर की तरफ बढ़ गई।

गैस सबसे पहले फैक्ट्री के पास बनी झुग्गियों में पहुंची, यहां गरीब परिवार रहते थे, जिनमें से कई लोगों ने सुबह का सूरज भी नहीं देखा, क्योंकि गैस इतनी जहरीली थी कि कुछ लोगों ने तो मिनटों में ही दम तोड़ दिया था। लोगों को सबसे ज्यादा आंखों में जलन हो रही थी, ऐसे में बड़ी संख्या में लोग अस्पताल पहुंचे, जब डॉक्टरों ने उनका चेकअप किया तो डॉक्टर भी हैरान थे कि एक दम से इतनी संख्या में लोगों का इलाज कैसे किया जाए। क्योंकि उस वक्त भोपाल की सबसे बड़ी अस्पताल हमीदिया में भी इतने सारे मरीजों को भर्ती करने की जगह नहीं थी।

हमीदिया अस्पताल में मरीजों का इलाज किया गया शुरू

काफी देर बाद जब यह स्पष्ट हो गया का गैस यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से रिस रही है तो हुक्मरानों की नींद खुली, लेकिन तब तक कई लोग मौत की नींद सो चुके थे। प्रशासन अलर्ट हुआ और तत्काल मरीजों को हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराना शुरू किया गया, जबकि शहर के सभी डॉक्टरों को इलाज के लिए अस्पताल बुलाया गया, क्योंकि बड़ी समस्या तो यह भी थी कि उस वक्त भोपाल में ऐसे डॉक्टर नहीं थे जो गैस पीड़ितों का इलाज कर सके। बताया जाता है कि उस दिन पहले दो दिनों में ही लगभग 50 हजार लोगों का इलाज हुआ था, जबकि कई मरीजों को इलाज के लिए दूसरे शहरों में ले जाया गया। आलम यह हुआ था कि मरीजों के इलाज के लिए पूरे भोपाल शहर में चंदा इक्कठा हुआ था, तब मरीजों का इलाज हो सका था।

आठ घंटे बाद शहर को गैस रिसाव से मिली थी निजात

बताया जाता है कि करीब 8 घंटे गुजर जाने के बाद भोपाल शहर को गैस रिसाव से निजात मिली थी, क्योंकि हुक्मरानों और प्रशासन को जब तक इसकी जानकारी मिली थी और फिर जब इस पर काम शुरू हुआ तब तक तबाही मच चुकी थी। करीब 8 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद गैस रिसाव को रोका गया, तब कही जाकर थोड़ी राहत मिली। लेकिन गैस रिसाव के बाद शहर में हर जगह अफरा-तफरी का माहौल दिख रहा था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो इस घटना में करीब 3 हजार लोगों की मौत हुई थी, लेकिन बताया जाता है कि इस घटना में 15 हजार से भी ज्यादा लोग मारे गए थे, जबकि कई लोग आज भी इस त्रासदी का दंश झेल रहे हैं।

38 साल से जारी है पीड़ितों का संघर्ष

भोपाल गैस त्रासदी को 38 साल बीत चुके हैं, इस घटना में 5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे, जो लोग जिंदा बचे उनमें से कई लोगों को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी हो गई, कुछ लोग अंधे हो गए, कुछ लोग दिव्यांग हो गए, इसके अलावा भी गैस पीड़ितों को सैंकड़ों बीमारियों ने जकड़ लिया। इस घटना के 38 साल बाद भी गैस पीड़ितों के जख्म नहीं भरे हैं। आज भी लोग मुआवजे, इलाज और न्याय की आस लिए बैठे है। सरकारें आई और गईं, दावे और वादे भी खूब हुए, लेकिन मानवता के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में शामिल इस घटना के जख्म आज भी नहीं भरे जा सके हैं।

घटना का मुख्य आरोपी उसी रात हो गया था फरार

भोपाल गैस त्रासदी के वक्त यूनियन कार्बाइड कंपनी का सीईओ अमेरिकी कारोबारी वारेन एंडरसन था। जो इस घटना का सबसे बड़ा आरोपी माना गया, बाद में पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। लेकिन गैस रिसाव वाली रात को ही एंडरसन भारत छोड़कर भाग निकला था। बताया जाता है कि 29 सितंबर 2014 को वारेन एंडरसन की गुमनामी में मौत हो गई. वारेन एंडरसन की मौत फ्लोरिडा के वेरो बीच इलाके के एक नर्सिंग होम में हुई थी. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूनियन कार्बाइड ने भारत सरकार को हादसे के मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन डॉलर का भुगतान किया था। लेकिन इस घटना के बाद एंडरसन कभी भारत नहीं लौटा।

First published on: Dec 02, 2022 03:52 PM

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