पीरपैंती विधानसभा से भाजपा के मुरारी पासवान आगे चल रहे है. 2 राउंड की काउंटिंग के बाद वह 3 हजार की बढ़त बनाए हुए है.
Bihar Chunav 2025: बिहार-झारखंड की सीमा से सटी पीरपैंती विधानसभा सीट पर एक बार फिर हलचल तेज हो गई है. अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित यह सीट भागलपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है पीरपैंती विधानसभा सीट पर काउंटिंग शुरू हो चुकी है. भाजपा से मुरारी पासवान और आरजेडी से राम विलास पासवान के बीच हो रही कांटे की टक्कर हो रही है. शुरूआती रूझान में मुकाबला बेहद करीबी का है. काउंटिंग पूरी होने के बाद ही पता चलेगा कि यह सीट किसके कब्जे में जाएगी. इलाके में सामाजिक समीकरणों का जटिल गणित हर बार उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करता है. करीब 3 लाख 77 हजार मतदाताओं वाली इस सीट पर एससी-एसटी समुदाय की अच्छी खासी संख्या है, जबकि मुस्लिम, वैश्य, कुर्मी-कोइरी और धानुक मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
वामदल और कांग्रेस का कभी था वर्चस्व
पीरपैंती की राजनीतिक कहानी 60 के दशक से ही दिलचस्प रही है. एक समय था जब कांग्रेस और वामदल का यहां अटूट दबदबा था. सीपीआई के वरिष्ठ नेता अंबिका प्रसाद इस क्षेत्र की राजनीति के पर्याय बन गए थे. उन्होंने यहां से 12 बार चुनाव लड़ा और 6 बार जीत दर्ज की. 1967 से 1977 तक तो वे लगातार चार बार विधानसभा पहुंचे. लेकिन 2000 के दशक में बदलते राजनीतिक समीकरणों ने इस परंपरा को तोड़ दिया.
2000 में आरजेडी का खाता खुला
वर्ष 2000 के चुनाव में पहली बार इस सीट पर राजद का झंडा लहराया. आरजेडी के शोभाकांत मंडल ने लगातार तीन बार जीत हासिल की. 2005 में जब राज्य में दो बार चुनाव हुए, दोनों बार शोभाकांत मंडल ने ही जीत दर्ज की और यह सीट आरजेडी की मजबूत गढ़ बन गई.
भाजपा ने 2010 में मारी पहली बाजी
साल 2010 में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर परचम लहराया. पार्टी के उम्मीदवार अमन कुमार भाजपा के पहले विधायक बने. हालांकि 2015 के चुनाव में भाजपा ने उम्मीदवार बदलकर ललन कुमार पर दांव लगाया, लेकिन इस बार आरजेडी के रामविलास पासवान ने 80 हजार से ज्यादा वोट पाकर जीत दर्ज की और भाजपा को पीछे छोड़ दिया.
2020 में ललन कुमार ने बदला समीकरण
2020 का चुनाव भाजपा और आरजेडी दोनों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई थी. भाजपा ने दोबारा ललन कुमार को टिकट दिया, जबकि आरजेडी ने अपने पुराने चेहरे रामविलास पासवान पर भरोसा जताया. इस बार मुकाबला रोमांचक रहा, लेकिन अंत में ललन कुमार ने 95,811 वोट हासिल कर 27 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की. अमन कुमार ने बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरने की कोशिश की, लेकिन असर सीमित रहा. बाद में वे फिर से भाजपा में लौट आए.
सीमावर्ती सीट पर सियासी समीकरण जटिल
झारखंड की सीमा से सटी यह विधानसभा सीट हमेशा से जातीय संतुलन और स्थानीय मुद्दों के आधार पर वोटिंग पैटर्न तय करती रही है. विकास, रोजगार और सीमा पार आर्थिक गतिविधियों पर भी यहां के मतदाताओं की नजर रहती है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मुकाबला फिर दिलचस्प रहेगा.
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