Bihar Chunav 2025: भागलपुर लोकसभा क्षेत्र की अहम विधानसभा सीट कहलगांव एक बार फिर सियासी सुर्खियों में है. कभी कांग्रेस के गढ़ के रूप में मशहूर यह सीट अब भाजपा के कब्जे में है. यहां करीब 3 लाख 73 हजार से अधिक मतदाता हैं, जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या महिला वोटरों से थोड़ी अधिक है. लंबे समय तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दिवंगत सदानंद सिंह ने इस क्षेत्र की राजनीति को अपने इर्द-गिर्द केंद्रित रखा था.
सदानंद सिंह का युग कहलगांव की पहचान बनी कांग्रेस
कहलगांव का जिक्र बिहार की राजनीति में आते ही सदानंद सिंह का नाम अपने आप जुड़ जाता है. वे इस सीट से 9 बार विधायक चुने गए, जिनमें एक बार उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी जीत हासिल की. विधानसभा में अपनी सादगी और संगठनात्मक कौशल के लिए प्रसिद्ध सदानंद सिंह ने कांग्रेस को यहां जमीनी मजबूती दी. 1970 के दशक से लेकर 2015 तक कहलगांव को उन्होंने ही प्रतिनिधित्व किया.
जब जदयू ने तोड़ी परंपरा
साल 2005 के विधानसभा चुनाव में कहलगांव में बड़ा उलटफेर हुआ. कांग्रेस के गढ़ में जदयू के अजय मंडल ने सदानंद सिंह को हराकर सभी को चैंका दिया. अजय मंडल अब भागलपुर के सांसद हैं और जदयू के प्रमुख नेताओं में गिने जाते हैं. हालांकि, 2010 में सदानंद सिंह ने शानदार वापसी की और दोबारा कहलगांव की गद्दी संभाली.
2020 में भाजपा ने रचा इतिहास
कहलगांव विधानसभा के इतिहास में पहली बार 2020 के चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की. पार्टी ने पवन यादव पर भरोसा जताया, जो 2015 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सम्मानजनक प्रदर्शन कर चुके थे. इस बार भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरे पवन यादव ने वामदल के उम्मीदवार शुभानंद मुकेश को बड़े अंतर से मात दी. शुभानंद मुकेश कांग्रेस के दिग्गज नेता सदानंद सिंह के पुत्र हैं, जिन्हें पिता की राजनीतिक विरासत सौंपी गई थी. लेकिन भाजपा की लहर के सामने कांग्रेस की परंपरा ढह गई और कहलगांव पर भगवा झंडा लहराया.
कहलगांव की राजनीति का नया अध्याय
कभी एक नेता की पहचान रही कहलगांव अब कई दलों के समीकरणों का केंद्र बन गई है. सदानंद सिंह की विरासत भाजपा का नया आत्मविश्वास और जदयू की बढ़ती सक्रियता इन तीनों का संगम आने वाले चुनाव को और दिलचस्प बना रहा है. यह देखना बाकी है कि क्या 2025 में कहलगांव में फिर इतिहास दोहराया जाएगा या नया इतिहास लिखा जाएगा.
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