नई दिल्ली: अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रहा भीषण युद्ध (Armenia Azerbaijan War) संघर्ष विराम की वार्ता होने के बाद भी थमा नहीं है। सोमवार को हेड्रुट शहर की दिशा से गोलाबारी की आवाजें सुनी गईं। इस बीच अर्मेनिया ने भारत का साथ मांगा है। अर्मेनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयन का कहना है कि जब तुर्की ने यूएन में कश्मीर मुद्दा उठाया था, तब अर्मेनिया ने भारत का साथ दिया था। अब यह भारत का समय है कि वह अर्मेनिया को सपोर्ट करे।
हालांकि भारत ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया में हालात पर चिंता जताते हुए शांति और बातचीत से ही मसले को हल करने पर जोर दिया है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि भारत इस स्थिति से चिंतित है जिससे क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा है। शत्रुता को तुरंत रोकने, संयम रखने और सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए सभी संभव कदम उठाया जाना जरूरी है।
इस बीच भारतीय लोगों का पूरा सपोर्ट अर्मेनिया को जाता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं, पाकिस्तान पहले ही अजरबैजान के समर्थन में है। पाकिस्तान ने अपने लड़ाके अजरबैजान के सपोर्ट में लड़ने भेजे हुए हैं। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एक पेपर के अनुसार, तुर्की और पाकिस्तानी सोशल मीडिया अकाउंट्स खुलकर अजरबैजान का सक्रिय रूप से समर्थन कर रहे हैं, वहीं भारतीय सोशल मीडिया अकाउंट अर्मेनिया का समर्थन कर रहे हैं। भारतीय सोशल मीडिया से हैशटैग IndiaSupportsArmenia ट्रेंड कर रहा है।
इस पेपर में आगे कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद के दौरान पिछले साल तुर्की के सोशल मीडिया अकांउट्स से हैशटैग #Pakistanisnotalone का उपयोग करके पाकिस्तान का समर्थन किया गया था। अब नागोर्नो-करबाख पर अजरबैजान-अर्मेनिया संघर्ष के साथ एक नया हैशटैग मुख्य रूप से तुर्की और पाकिस्तानी खातों से जुड़ा हुआ है जिसमें लिखा है #Azerbaijanisnotalone
अर्मेनिया का सपोर्ट कर एक भारतीय यूजर ने लिखा, भारत और अर्मेनिया के काफी अच्छे इंडस्ट्रियल और कल्चरल रिलेशन रहे हैं। कहा जा रहा है कि भारत में अर्मेनियाई लोगों की उपस्थिति का पता 8 वीं शताब्दी के अंत में लगाया जा सकता है। वर्षों से कोलकाता देश के भारतीय-अर्मेनियाई समुदाय का घर रहा है।
इतिहासकार शहर के विकास और अपने कुछ सबसे प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों की स्थापना का श्रेय अर्मेनियाई समुदाय को देते हैं। अजरबैजान को पाकिस्तान और तुर्की की ओर से मिल रहे अटूट समर्थन एक और कारण है, वह यह कि भारतीय अर्मेनिया का समर्थन कर रहे हैं। अर्मेनिया की राजधानी येरेवन में भारतीय समुदाय सड़कों पर उतरकर अर्मेनिया को सपोर्ट कर रहा है।
भारतीय लोग अर्मेनिया में आर्तकश से आने वाले लोगों के लिए खाना बना रहा है।
नागोर्नो-करबाख में लड़ाई शुरू होने के तीन दिन बाद, आर्मेनिया के सेंट टेरेजा मेडिकल यूनिवर्सिटी में एक भारतीय छात्र 21 वर्षीय संजय यादव छह दोस्तों को येरेवन के रिपब्लिक स्क्वायर में लेकर गए। यह छात्र फ्रंटलाइन पर आर्मेनियाई सैनिकों को भोजन और पानी दान करने के लिए देश के साथ एकजुटता में लगा है। भारत-अर्मेनियाई एनजीओ अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच लड़े गए दो सप्ताह के युद्ध से प्रभावित अर्मेनियाई लोगों की मदद के लिए भारत से चंदा इकट्ठा कर रहा है।
भारत ने आधिकारिक तौर पर संघर्ष में किसी का पक्ष नहीं लिया है। हालांकि भारत ने पूर्व में अर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति की है। मार्च में भारत ने अर्मेनिया के साथ चार SWATHI वेपन का पता लगाने वाले रडार की आपूर्ति के लिए $ 40 मिलियन की डिफेंस डील की है।
रातभर चला युद्ध
अर्मेनियाई और अजरबैजानी सेना के बीच रातभर और सोमवार सुबह भी संघर्ष जारी रहा। समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, सोमवार सुबह फ्रंट लाइन से दूर अजरबैजान शहर बर्दा में गोलाबारी की गूंज सुनाई दी। विवादित नागोर्नो-करबाख क्षेत्र पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर यह युद्ध जारी है। हेड्रुट शहर की दिशा से गोलाबारी की आवाजें लगातार सुनी जा रही हैं। मास्को में अर्मेनियाई और अजरबैजान के विदेश मंत्रियों के बीच 11 घंटे की बातचीत के बाद, दोनेां कट्टर दुश्मन शनिवार को मानवीय संघर्ष विराम के लिए सहमत हुए थे, लेकिन इसके महज आधे घंटे बाद ही इसका उल्लंघन कर अजरबैजान की ओर से अर्मेनिया में मिसाइलें दाग दी गईं।
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