Vijay Diwas 2020 : आज फिर पाकिस्तान को याद दिलाने का वक्त है। पाकिस्तान को 50 साल पहले ले जाने की ज़रुरत है। साल 1971 की एक रात, जिसे पाकिस्तान कभी नहीं भूलेगा। जब भी 1971 की लड़ाई और उसमें लोंगेवाला का नाम आता है तो उसे सुनकर पाकिस्तान सहम जाता है। 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग जहां भारत के मुट्ठी भर जवानों ने पाकिस्तान के दो हज़ार से ज़्यादा सैनिकों को नाकों चने चबवा दिए। आज हिंदुस्तान पाकिस्तान से काफी आगे है। पाकिस्तान ने अब अगर कोई हिमाकत की तो बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा।
पाकिस्तान की हार का गवह है लोंगेवाला। लोंगेवाला वो जगह जहां पाकिस्तान के टैंकों और सैनिकों की कब्रगाह बनी है। 4 और 5 दिसंबर 1971 उस रात को पाकिस्तान आज भी नहीं भूल पाया है जब हिंदुस्तान के मुट्ठी जांबाज़ों ने उसे धूल चटाया था। लोंगेवाला का नाम सुनते ही आज भी पाकिस्तान कांप जाता है। लोंगेवाल पोस्ट पर 23वीं पंजाब रेजीमेंट के करीब 100 जवान और अफसर तैनात थे, जिसकी कमान मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के हाथों में थी। बाकी बटालियन लोंगेवाल से करीब 17 किलोमीटर दूर साधेवाल में तैनात थी।
पाकिस्तान ने बड़ी गुस्ताखी की उसने लोंगेवाला पोस्ट पर हमला कर दिया। पाकिस्तान की इस गुस्ताखी की भारतीय जांबाज़ों ने ऐसी सज़ा दी जिसे यादकर पाकिस्तान आज भी दहल जाता है, लेकिन पाकिस्तान है कि अपनी कारिस्तानियों से बाज़ नहीं आता है। जब-जब पाकिस्तान भारत से टकराया है हमेशा उसे मुंह की ही खानी पड़ी है। जिसका गवाह 1971 की जंग भी। 4 और 5 दिसंबर 1971 की आधी रात का वक़्त पाकिस्तानी सेना की एक पूरी इंफेंट्री बख्तरबंद गाड़ियों और उस समय उसके पास मौजूद सबसे अत्याधुनिक टी-57 टैंको को लेकर हिंदुस्तान की सरहद में घुस गयी। जैसलमेर पर कब्ज़ा ज़माने की नीयत से। पाकिस्तानी टैंकों ने गोले बरसाते हुए भारतीय पोस्ट को घेर लिया लेकिन भारत के जवाबी हमले में हारकर उसे उल्टे पैर भागना पड़ा।
अपने नापाक इरादों के साथ पाकिस्तानी सेना चेकपोस्ट पर कब्जा कर रामगढ़ से होते हुए जैसलमेर तक जाना चाहते थे। पर भारतीय सेना के इरादे भी फौलादी थे, जो दीवार बन कर उनके समाने खड़े हो गए। रात होते-होते अब तक भारत की छोटी सी टुकड़ी ने दुश्मन के 12 टैंक तबाह कर दिए थे। इन टेंकों में T-59 टेंक भी थे जिनका इस्तेमाल पकिस्तान ने हिन्दुस्तान के खिलाफ 1965 की जंग के साथ 1971 की जंग में भी किया था। उस वक़्त ये सबसे उन्नत और विध्वंसकारी टेंक माने जाते थे, लेकिन ये टेंक भी जगह-जगह हिंदुस्तानी सैनिकों द्वारा बिछाए गए लेंड लाईन्स के चलते बहुत आगे नहीं बढ़ सके। रातभर गोलीबारी जारी थी, लेकिन इस युद्ध का नतीजा सूरज की पहली किरण ने बदल दिया।
जैसलमेर एयरबेस पर उस वक्त सिर्फ 4 हंटर एयरक्राफ्ट और सेना के ऑब्जर्वेशन पोस्ट के दो विमान थे। हंटर एयरक्राफ्ट रात के अंधेरे में हमला नहीं कर सकते थे। अब इंतजार सुबह का था। सुबह होते ही 2 हंटर विमान लोंगेवाला की तरफ निकल पड़े। उस वक्त रोशनी इतनी कम थी कि आसमान की ऊंचाई से जमीं का अंदाजा लगा पाना मुश्किल था। तब न तो नेविगेशन सिस्टम इतना मॉडर्न था और न ही कोई लैंडमार्किंग थी। ऐसे में दोनों विमान जैसलमेर से लोंगेवाला तक जाने वाली सड़क के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़े थे और धूल के गुबार में छिपे पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाया। छह घंटे तक चले इस भीषण युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 179 सैनिकों को हताहत करने के साथ 35 टैंकों को भी नष्ट करने में भी कामयाबी हासिल की थी। आज भी पाकिस्तान के जब्त टेंक और गाड़ियां यहां पर मौजूद है।
वैसे पकिस्तान की सेना को जब हिन्दुस्तानी सैनिक खदेड़ रहे थे तब भी सुधरने की बजाय पाकिस्तान ने एक बड़ी चाल चली। पाकिस्तानी सरहद की तरह उलटे पैर भागे रहे पाकिस्तानी सैनिकों ने बीच गांव में आने वाले कुओ में जहर डालना शुरू कर दिया। हर साल दिसंबर के महीने में जंग के दिनों की यादें ताजा हो जाती हैं। ये दुनिया की पहली ऐसी जंग थी जो सिर्फ 13 दिन तक ही लड़ी गई। 16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान ने 93000 सैनिकों के साथ हिंदुस्तान के आगे सरेंडर किया था। इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाते हैं।
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