नई दिल्ली: इजरायल शुरू से ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम का विरोध करता है। उसके परमाणु प्रोग्राम पर पैनी नजर रखता है तो ईरान इजरायल के आस्तित्व को ही नकार देता है। इन दोनों की दुश्मनी का रंग उस वक्त और भी गहरा हो गया जब ट्रंप ने सऊदी अरब से इजरायल की दोस्ती कराकर खाड़ी में उसकी एंट्री करा दी।
ईरान को ये पसंद नहीं आया और वो इजरायल के साथ-साथ सऊदी अरब को भी अपना दुश्मन मान बैठा। पहले अमेरिकी ड्रोन से ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या फिर, फिर मोसाद की गोलियों से परमाणु वैज्ञानिक का कत्ल ईरान के लिए सबसे बड़ा सदमा था। साथ ही पारस खाड़ी में उसका खौफ भी कम हो रहा था। अंदर ही अंदर बदले की आग में सुलग रहे रूहानी गैंग ने मोसाद को सबक सिखाकर बदला तो ले लिया, लेकिन उसके अंदर की आग भी नहीं बुझी है।
41 साल से दोनों एक-दूसरे से बदला लेने की कोशिश
वो साल 1979 था, जब ईरान और इजरायल की दुश्मनी परवान चढ़ी। ईरानी में क्रांति हो रही थी, साथ ही इजरायल को खत्म करने की आवाज भी बुलंद हो रही थी। ईरान ने इजरायल के आस्तित्व को मानने से ही इनकार कर दिया था। इसके पीछे ईरान का मानना है कि इजरायल ने गलत तरीके से मुस्लिमों की जमीन पर कब्जा कर लिया है। इधर इजरायल में भी ईरान के विरोध की आग सुलग रही थी। इजरायल ईरान को अपने लिए सबसे बड़े संकट के रूप में देखने लगा।
ईरान अपने सीक्रेट केमिकल-बॉयोलॉजिकल वेपन्स के लिए जाना जाता है। वो अमेरिका की नजर से बचकर अपने परमाणु हथियारों को बनाता है, लेकिन इजरायल की खुफिया एजेंसी के रडार से बचकर रूहानी गैंग को ऐसा कर पाना काफी मुश्किल होता है। क्योंकि मोसाद उसके सीक्रेट मिशन को खत्म करने के लिए उससे जुड़े लोगों को ही ठिकाने लगा देती है।
कुछ दिन पहले रूहानी के रणविजय यानी परमाणु वैज्ञानिक को मारने से पहले भी मोसाद ईरान के कई वैज्ञानिकों को मौत के घाट उतार चुका है।
साल 2020 में ईरान के पार्टिकल फिजिक्स एक्सपर्ट मसूद अली मोहम्मदी को रिमोट-कंट्रोल्ड बम से उड़ा दिया गया था।
इसी साल न्यूक्लियर साइंटिस्ट माजिद शहरियार की कार पर बम फोड़कर उसे ठिकाने लगाया।
2012 में ईरान की यूरेनियम एनरिचमेंट फेसिलटी के डेप्युटी हेड मुस्तफा अहमदी रोशन को बम धमाके में उड़ा दिया गया।
2011 में एक और वैज्ञानिक दारिउश रेजैनेजाद को हथियारबंद मोटरसाइकल सवारों ने गोली से उड़ा दिया था।
ये सभी साइंटिस्ट ईरान के सीक्रेट परमाणु कार्यक्रम के लिए काफी अहम थे, लेकिन एक के बाद एक मोसाद ने सब को ठिकाने लगा दिया और ईरान देखता ही रह गया।
इजरायल चारों ओर से 13 मुस्लिम देशों से घिरा हुआ है, जो उसे अपना दुश्मन मानते हैं। ऐसे में इस देश को जिंदा रहने के लिए ही काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। दुश्मनों पर पैनी नजर और इजरायल खिलाफ खुफिया मिशन को फेल करने के लिए इजरायल ने मोसाद का इजाद किया। ये एजेंसी इतनी ताकतवार है कि इसे इजरायल की किलिंग मशीन तक कहा जाता है। अपनी तेजी और खतरनाक ऑपरेशन की वजह से मोसाद दुनिया की सबसे तेज इंटेलिजेंस भी कही जाती है। इसका मुख्यालय तेल अवीव शहर में है। दिसंबर 1949 को बनी ये एजेंसी इज़राइल की नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी है, ठीक वैसे ही जैसे भारत की रॉ है।
दुश्मनी का सीरिया कनेक्शन
इसके अलावा ईरान और इजरायल की दुश्मनी का सीरिया कनेक्शन भी सामने आता है। साल 2011 में सीरिया में गृहयुद्ध छिड़ा हुआ था, लेकिन इजरायल ने यहां कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इजरायल ने बशर अल असद और विद्रोहियों दोनों से ही बराबर की दूरी बनाकर रखी। लेकिन ईरान ने बशर अल असद को पूरा समर्थन दिया। ईरान ने उस वक्त विद्रोहियों को मार गिराने के लिए अपने जवान भी भेजे थे, जिसका इजरायल ने जबरदस्त विरोध किया।
दुश्मनी का लेबनान कनेक्शन
ईरान बेहद गुप्त तरीके से लेबनान विद्रोहियों को भी हथियार देता है और इजरायल इसका विरोध करता है।
दुश्मनी का हिज्बुल्ला कनेक्शन
इजरायल से दुश्मनी निभाने के लिए ईरान हिज्बुल्ला और फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास का भी समर्थन करता है।
साफ है दोनों की दुश्मनी चरम है और दोनों देशों के बीच दुनिया के सबसे खौफनाक हथियार भी हैं। अगर जंग छिड़ी तो फारस की खाड़ी में उबाल तो आएगा ही साथ ही दुनिया भी अब तक की सबसे भीषण जंग देखेगी।
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