नई दिल्ली: व्हाइट हाउस का कमांडर क्या बदला, रुहानी का तो पूरा तेवर ही बदल गया। ट्रंप काल में अमेरिका से टक्कर के ख्याल से भी कांपने वाला रुहानी अब सुपरपावर को अकड़ दिखाने लगा है। बार-बार एटम बम, एटम बम बनाने का राग अलाप रहा है। रुहानी की जिद ने खाड़ी के उस खूनी काल को ताजा कर दिया है।
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के प्रवक्ता के पास ईरान को लेकर हर सवाल का एक ही जवाब है। रुहानी के बदलते तेवर देखकर अमेरिका सीधे-सीधे उसको टारगेट करने से बच रहा है। ईरान को लेकर हर सवाल के एक ही जवाब से ये आसानी से समझा जा सकता कि खुद व्हाइट हाउस भी ये महसूस कर रहा है कि रुहानी से पंगा लेना आसान नहीं है।
अब एक तरफ अमेरिका बातचीत के जरिए ईरान से एटम डील के मसले को सुलझाकर आगे बढ़ना चाहता है। दूसरी तरफ रुहानी अपनी अलग ही हेकड़ी दिखा रहा है। ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद ज़रीफ ने साफ कर दिया है कि अब ईरान इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी को अपनी न्यूक्लियर साइट की सर्विलांस फुटेज देना बंद कर देगा। ईरान अब हर दिन और हर हफ्ते की रिकॉर्डिंग नहीं सौंपेगा। हालांकि दावा किया गया है कि इन्हें 3 महीने तक सेव करके रखा जाएगा। एटॉमिक एनर्जी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ ईरान इन रिकॉर्डिंग को तभी सौंपेगा, जब ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाया जाएगा।
एक तरफ अमेरिका लगातार ईरान से बातचीत की टेबल पर बैठकर मसले को सुलझाने की रट लगा रहा है। दूसरा रूहानी है, जो अपने बारूदी स्टैंड पर लगातार आगे बढ़ रहा है। अब रुहानी की इमेज में अचानक आया ये चेंज कैसे उसको सद्दाम के बराबर लाकर खड़ा कर रहा है, अब जरा इसे भी समझ लीजिए।
सद्दाम ने जब इराक की सत्ता हासिल की, उसके कुछ सालों तक वो अमेरिका का लाडला रहा। जब इराक-ईरान के साथ जंग के मैदान में भिड़ा तो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन ने इराक की मदद की। अब बाइडेन को घुड़की दे रहा रुहानी भी ओबामा के वक्त परमाणु समझौता को राजी हो गया था। हालांकि ट्रंप ने आते ही उसे पलट दिया। सद्दाम करीब 10 सालों तक ईरान के साथ बैटल फील्ड में जूझता रहा। सद्दाम की इमेज एक लड़ाके की बन गई, लेकिन 1990 में जब इराक ने कुवैत पर कब्जा किया वो अमेरिका की आंख में चुभने लगा। इराक-अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से 42 दिन के युद्ध के बाद भी वो अमेरिका के आगे नहीं झुका, भले ही अपनी जान गंवा बैठा। कुछ ऐसा ही अड़ियल रुख रुहानी का है, जो अमेरिका के तमाम प्रतिबंधों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए एटम बम बनाने के अपने रास्ते पर हर दिन आगे बढ़ रहा है।
खाड़ी से उठते इस नए समीकरण का दिलचस्प एंगल ये है कि अमेरिका इलाके में अपने सहयोगी इजरायल को भी नाराज कर रहा है। इजरायल, ईरान के साथ फिर से एटमी डील पर लौटने के खिलाफ है तो बाइडेन डील पर वापस लौटने के संकेत दे रहे हैं। भला बाइडेन के बदले रुख की वजह क्या है, क्या वाकई रुहानी खाड़ी देशों का खलीफा बनकर उभर रहा है, जिससे अमेरिका भी सीधे टकराने से बच रहा है।
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