नई दिल्ली: आर्मीनिया के साथ रूस की रक्षा संधि थी, लेकिन पुतिन ने फूंक-फूंककर कदम रखा। आर्मीनिया के लोगों को हार के बाद डर था कि अजरबैजान की सेना और ISIS के आतंकी काराबाख में नरसंहार कर सकते हैं। ये डर सच साबित हो जाए इससे पहले पुतिन ने अपनी फौज काराबाख में उतार दी है। नागोरनो-काराबाख की पहाड़ियों पर अब पुतिन के फौजी टेंट लग गए हैं।
नागोरनो-काराबाख में अब रूस की सेना काबिज है। पहाड़ी घाटियों में लाल छत वाले टेंट तान दिए गए हैं। रूस के 2000 सैनिकों की निगरानी में काराबाख खाली हो रहा है और अजरबैजान इलाके पर कब्जा करता जा रहा है।
बीते डेढ़ महीने से नागोर्नो-काराबाख की इन पहाड़ियों पर सिर्फ बारूद बरसा है। अभी भी ये इलाका पूरी तरह शांत नहीं हुआ है, रह-रहकर धमाके हो रहे हैं। इसलिए अब यहां रूस ने मल्टीपल रॉकेट लांचर से लैस ट्रक रवाना कर दिए हैं।
रूस ने ही अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच सीजफायर करवाया है। समझौते में ये शर्त रखी गई कि आर्मीनिया की नागोर्नो-काराबाख की सीमा के जिन इलाकों पर नियंत्रण रखता है, उसे वो आजरबैजान को सौंपने होंगे। इन इलाकों में अब गदर मचा हुआ है।
पुतिन नहीं चाहते कि उनकी बात खराब हो, इसलिए सीजफायर की शर्तों को पूरा करवाने की जिम्मेदारी उन्होंने उठा ली है। रूस के सैनिकों के रहते काराबाख में अजरबैजानी सैनिक नरसंहार नहीं कर पाएंगे।
नागोरनो-काराबाख में हुई हार के बाद आर्मीनिया में भी जबर्दस्त उथल-पुथल मची है। आर्मीनिया के विदेश मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है। आर्मीनिया-अज़रबैजान के बीच की जंग डेढ़ महीने बाद आखिरकार थम गई है। रूस ने दोनों देशों में समझौता करवा दिया, लेकिन इस समझौते में काराबाख के लोगों को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। जंग थम तो गई है, लेकिन इस इलाके का बंटवारा हो गया है।
बंटवारे के बाद बर्बादी का मंजर
दरअसल, शांति समझौते के तहत अर्मेनिया अपने विवादित क्षेत्र नागोर्नो-कराबाख को अजरबैजान को सौंपने पर सहमत हो गया है। हालांकि ये इलाका पहले अजरबैजान का ही हिस्सा था, लेकिन कई दशकों से इस पर आर्मीनियाई लोग रह रहे थे। अजरबेजान के कब्जे से पहले नागोरनो-कराबाख में लोग अपने घर खाली करने से पहले उनमें आग लगा रहे हैं।
9 नवंबर को रूस की मध्यस्थता के बाद आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जंग थमी। समझौते के तहत अर्मीनिया कालबाजार और अघदम जिलों को 20 नवंबर तक अजरबैजान को वापस सौंप देगा जबकि आर्मेनिया को एक दिसंबर तक लचिन जिले को अजरबैजान को सौंपना होगा। 1990 के दशक में हुए युद्ध के बाद से ही इस पर आर्मीनिया के लोगों का कब्जा था। जानकारी के मुताबिक चरेकटर नाम के गांव के लोगों ने 30 से ज्यादा घरों को आग लगाकर इलाका छोड़ कर चले गए हैं।
अर्मेनियाई लोग अपने घर जलाने से पहले जो कुछ भी अपने साथ ले जा सकते थे, उसे ट्रकों पर लोड किया। ज्यादातर परिवारों ने अपने घरों से सभी चीजों को हटा दिया। कुछ लोगों ने तो घरों को जलाने से पहले दरवाजों और खिड़कियों को भी हटा दिया और ट्रकों पर लोड कर लिया, जिसे वो अपने नए घरों में इस्तेमाल के लिए लेकर जाएंगे।
नागोरनो-काराबाख दो दशक से ईसाई बहुल आर्मीनिया के कब्जे में था। अब ये मुस्लिम बहुल अजरबैजान का हिस्सा बनने जा रहा है और यही वजह है कि लोगों अपनी संस्कृति और धरोहरों का दूसरे धर्म के हाथों बर्बादी का डर है। लोग अपने पूर्वजों के अवशेष और कब्रों को भी अपने साथ ले जा रहे हैं, जिससे उन्हें एर्दोगन की सेना के हाथों अपमान का सामना न करना पड़े।
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