नई दिल्ली: बांग्लादेश के दौरे के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) सबसे पहले जेशोरेश्वरी काली मंदिर पहुंचे और पूजा अर्चना की इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी गोपालगंज के ओराकांडी में स्थित मटुआ समुदाय के मंदिर (Orakandi Temple) जाकर पूजा अर्चान की।
ओराकांडी वो जगह है जहां मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिशचंद्र ठाकुर का जन्म हुआ था। पीएम मोदी ने कहा कि मैं कई सालों से इस अवसर का इंतजार कर रहा था। बांग्लादेश की 2015 की यात्रा के दौरान मैंने ओराकांडी आने की इच्छा जाहिर की थी और वो इच्छा पूरी हो गई।
पीएम ने कहा कि मौतुवा शॉम्प्रोदाय के हमारे भाई-बहन श्री श्री हॉरिचान्द ठाकुर जी की जन्मजयंति के पुण्य अवसर पर हर साल 'बारोनी श्नान उत्शब' मनाते हैं। भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस उत्सव में शामिल होने के लिए, ओराकान्दी आते हैं। भारत के मेरे भाई-बहनों के लिए ये तीर्थ यात्रा और आसान बने, इसके लिए भारत सरकार की तरफ से प्रयास और बढ़ाए जाएंगे। ठाकूरनगर में मौतुवा शॉम्प्रोदाय के गौरवशाली इतिहास को प्रतिबिंबित करते भव्य आयोजनों और विभिन्न कार्यों के लिए भी हम संकल्पबद्ध हैं।
पीएम बोले-कोरोना महामारी के दौरान, भारत और बांग्लादेश ने अपनी क्षमताओं को साबित किया है। आज दोनों राष्ट्र इस महामारी का जोरदार तरीके से सामना कर रहे हैं और इसे साथ मिलकर लड़ रहे हैं। भारत इसे अपना कर्तव्य मानकर काम कर रहा है कि मेड इन इंडिया टीका बांग्लादेश के नागरिकों तक पहुंचे।
ओरकांडी मंदिर (Orakandi Temple)
मटुआ समुदाय का मंदिर (Orakandi Temple) बांग्ला देश के गोपालगंज के ओराकांडी में स्थित है। यहां पश्चिम बंगाल के मटुआ समुदाय के 300 लोग रहते हैं। पीएम मोदी हरिचंद गुड़ीचंद मंदिर में पूजा करने के बाद मटुआ समुदाय के लोगों से मिले। हरिचंद ठाकुर के अनुयायियों द्वारा धार्मिक सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप मटुआ संप्रदाय का बांग्लादेश में उत्पन्न हुआ। हरिचंद ठाकुर मटुआ महासंघ के संस्थापक थे, जिन्होंने ओरकांडी में सन 1860 धार्मिक सुधार आंदोलन की शुरुआत की।
हरिचंद ठाकुर ने की मटुआ संप्रदाय की स्थापना
बताया जाता है कि अपने जीवन के शुरुआती सालों में ही हरिचंद ठाकुर को अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ, जिसके बाद उन्होंने उन्होंने मटुआ संप्रदाय की स्थापना की। इस संप्रदाय के लोग शुद्र थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। ठाकुर के धार्मिक सुधार का उद्देश्य शैक्षिक और अन्य सामाजिक पहलों के माध्यम से समुदाय का उत्थान करना था। समुदाय के सदस्य हरिचंद ठाकुर को भगवान और विष्णु या कृष्ण का अवतार मानते हैं।
1947 में विभाजन और 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बाद मटुआ समुदाय के लोग पश्चिम बंगाल आए। ये लोग भारत-बांग्लादेश सीमा के इलाके में बस गए। विभाजन के बाद भारत आए मटुआ समुदाय के लोगों को पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, ओडिशा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बसाया गया। समुदाय के अनुमानित दो या तीन करोड़ लोग नॉर्थ 24 परगना, साउथ 24 परगना, नादिया और जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी, कूच बिहार और बर्धमान के छोटे हिस्सों में फैले हुए हैं।
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