नई दिल्ली : नेपाल में सियासी घमासान तेज हो गया है और देश संवैधानिक संकट बढ़ गया है। अपनी ही पार्टी के नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी अंदर से ही विरोध झेल रहे नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने रविवार को अचानक मंत्रिमंडल की बैठक में संसद के मौजूदा सदन को भंग करने का फैसला किया है। मंत्रिमंडल की तरफ से सदन को भंग करने की औपचारिक सिफारिश राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से भी की जा चुकी है।
इस बीच नेपाल में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से बयान जारी करके कहा गया कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सदन को भंग करने का फैसला जल्दबाजी में किया है। सदन को भंग नहीं किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ओली ने आज सुबह 10 बजे कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई थी। माना जा रहा था कि इसमें ओली सरकार संवैधानिक परिषद अधिनियम (कार्य, कर्तव्य और प्रक्रिया), 2010 में संशोधन को वापस लेने की सिफारिश करेगी, लेकिन इसके बजाय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति से संसद को भंग करने की सिफारिश कर दी।
इससे पहले ओली द्वारा लाए गए संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने मंगलवार को मंजूरी दे दी थी, जिसे वापस लेने का ओली पर दबाव था। इसके मुताबिक कोरम पूरा नहीं होने पर भी परिषद की बैठक बुलाई जा सकती है।
अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद ओली को परिषद की बैठक बुलाने और तीन सदस्यों की उपस्थिति में भी फैसले लेने का अधिकार मिल गया है। संवैधानिक परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री हैं। इसमें चीफ जस्टिस, प्रतिनिधि सभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर, नेशनल असेंबली के चेयरमैन और मुख्य विपक्षी दल के नेता सदस्य के रूप में इसमें शामिल होते हैं। परिषद संवैधानिक संस्थाओं, न्यायपालिका और विदेशी मिशनों जैसे अहम जगहों में प्रमुख पदों पर नियुक्ति की सिफारिश करती है।
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