नई दिल्ली: पाकिस्तान (Pakistan) के इतिहास में सबसे बड़ी घटना हुई है। इमरान खान (Imran Khan) सरकार और सेना के खिलाफ 11 विपक्षी पार्टियों ने 2018 के चुनावों में धांधली करने का आरोप लगाकर मोर्चा खोल दिया है। कहा जा रहा है कि सेना की इसी धांधली की वजह से इमरान खान ने सत्ता हासिल की थी। पाकिस्तान में अभी तक सेना को चुनौती देने हिम्मत किसी ने नहीं की है, लेकिन अब वक्त बदल रहा है। सेना को सियासी पार्टियां सीधे चुनौती भी दे रही हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के युवा अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी काफी वक्त से यह काम कर रहे थे। लेकिन, अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी उनके साथ आ गए हैं। इसके अलावा मौलाना फजल-उर-रहमान भी इनके साथ हो गए हैं। 11 प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने मिलकर थ्री फेज एंटी गवर्नमेंट मूवमेंट शुरू करने के लिए पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) का गठन किया है।
पीडीएम जनवरी 2021 में इस्लामाबाद की ओर एक "निर्णायक लंबे मार्च" से पहले देशव्यापी जनसभाएं, विरोध प्रदर्शन और रैलियां शुरू करेगा। विपक्षी नेताओं ने घोषणा की है कि वे सभी राजनीतिक और लोकतांत्रिक विकल्पों का उपयोग करेंगे, जिनमें संसद से प्रधानमंत्री के इस्तीफे के लिए अविश्वास प्रस्ताव और सामूहिक इस्तीफे शामिल हैं। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि राजनीति में सैन्य प्रतिष्ठान की भूमिका का जल्द ही अंत होगा।
पाकिस्तान की दो मुख्य विपक्षी पार्टियां पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (PPP) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज (PML-N) भी खुलकर पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका की आलोचना कर रहे हैं। दरअसल, इमरान खान की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ पूर्व पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के आरोपों के साथ शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सैन्य प्रतिष्ठान के पूर्ण हस्तक्षेप का खुलासा किया है। सेना पर समानांतर सरकार का आरोप लगा है। पीएमएल-एन नेता ने यह भी आरोप लगाया था कि खान को सत्ता में लाने के लिए सेना जिम्मेदार थी।
2018 में इमरान खान जब प्रधानमंत्री बने, तभी से उन पर आरोप लग रहे हैं कि वे सेना के दखल से ही प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे हैं। बिलावल दो साल से अपने भाषणों इस बात को दोहराते आ रहे हैं। विपक्ष एकजुट होकर इमरान सरकार को गिराने के लिए सड़कों पर उतर चुका है। नवाज शरीफ ने पिछले दिनों वर्चुअली संबोधित कर चुनावों में फौज की भूमिका पर सवाल उठाए थे। नवाज 1993 में पहली बार पीएम बने। तब राष्ट्रपति ने फौज के इशारे पर उन्हें हटाया था।
1999 में जब वे फिर प्रधानमंत्री बने तो परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली। देश में फौजी हुकूमत आई। 2017 में कोर्ट और फौज ने इमरान के आंदोलन के नाम पर उन्हें हटाया। नवाज को तीनों बार सत्ता सेना की वजह से खोनी पड़ी है। शायद यही वजह है कि अब वे इस परेशानी को खत्म करने के लिए विपक्ष को एकजुट करने में कामयाब हो रहे हैं।
बिलावल भुट्टो ने फौज को सीधे चेतावनी दी है कि वो सियासी मामलों से दूर रहे। उन्होंने पिछले दिनों धमकी दी कि अगर फौज सरकार का समर्थन बंद नहीं करती तो विधानसभाओं और संसद से सभी चुने हुए प्रतिनिधि इस्तीफा दे देंगे। बिलावल ने कहा- मुझे समझ नहीं आता कि पोलिंग बूथ के अंदर और बाहर फौजियों की तैनाती क्यों की गई है। गिलगित-बाल्तिस्तान को पांचवां राज्य बनाने पर हमें आपत्ति नहीं, लेकिन ये काम संसद की बजाए फौज क्यों कर रही है।
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