संजय गोदियाल, नई दिल्लीः क्या मरीयम नवाज शरीफ बेनजीर भुट्टो जैसी हैं। क्या मरीयम के रूप में पाकिस्तान को बेनजीर मिल गई है। बेनजीर अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी के बाद सक्रिय राजनीति में आईं थीं। तब फौजी हुकुमत ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया था। बावजूद इसके वो पाकिस्तान के शिखर तक पहुंची।
मरियम भी नवाज शरीफ की गैर-हाजिरी में पिता की विरासत संभाल रही हैं। हालांकि उनको अभी बहुत फासला तय करना है, लेकिन उनके जलसों में अवाम की मौजूदगी बताती है कि मरियम भी बेनजीर के ही रास्ते पर हैं। मरियम की मुखरता से इमरान सरकार के पिलर हिल चुके हैं। अपनी काबिलियत से उन्होंने साबित कर दिया कि उनकी सियासी कुशलता पर शक करना बेमानी है।
ये भी लगभग तय है कि नवाज शरीफ अपनी सियासी विरासत बेटी मरियम के हाथों में सौंपने की ठान चुके हैं। पिछले कुछ महीनों में कई मौके ऐसे आए जब मरियम अपने पिता नवाज और चाचा शहबाज शरीफ पर हावी दिखीं। नवाज के लंदन जाने के बाद पार्टी की कमान उन्होंने अच्छे से संभाल रखी है। जलसो में जब भी मरियम बोलती हैं।
अवाम उनको अच्छे से सुनते हैं। उनकी बातों पर अमल करती है। हाल ही में उन्होंने हुकूमत के खिलाफ विपक्षी सांसदों से इस्तीफा की अपील की थी, जिसे हाथों हाथ लिया गया। फौरन पीएमएल-एन के दो सांसदों ने इस्तीफा मरियम के हाथ में रख दिया।
'मीनार ए पाकिस्तान' जैसा सियासी कद'
पिता नवाज के पाकिस्तान से बाहर होने के बावजूद मरियम नवाज शरीफ ने मोर्चा बुलंद कर रखा है। पाकिस्तान की सियासत में जिस तरह से उनका कद बढ़ा है। उससे सियासी पंडितों को कहीं ना कहीं मरियम में उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की झलक दिखाई दे रही है।
ये अलग बात है कि नवाज शरीफ और बेनजरी भुट्टो एक दूसरे के विरोधी थे, जब भी मौका मिला। दोनों एक दूसरे को दर बदर करने में पीछे नहीं रहे, लेकिन बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद उनके बेटे बिलावल ने सारे गिले भूल कर मरियम से दोस्ती का गठबंधन कर लिया...दोनों का मकसद भी एक है। इमरान और बाजवा को बाहर का रास्ता दिखाना।
अवाम का प्यार मरियम का यलगार
मरियम और बिलावल का गठबंधन पाकिस्तानी अवाम को भी खूब भा रहा है, जब भी इन दोनों के नेतृत्व में पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी PDM का आंदोलन होता है। अवाम का भरपूर समर्थन मिलता है। जलसों में भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। उनके मुंह से निकला एक एक लफ्ज़ सीधे लोगों के दिलों तक जाता है।
ये ही वजह कि कराची से लेकर लाहौर की मीनार ए पाकिस्तान तक सेना और सरकार के खिलाफ PDM का जलसा सफल रहा है। वो इमरान सरकार की नाकामयाबी को जोर-शोर उठाती हैं। मरियम के सितारों की बुलंदियों से इमरान और जनरल बाजवा के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
पिता का प्यार भी समर्थन भी
मरियम इमरान और बाजवा के खिलाफ यलगार करती हैं, तो लंदन में बैठे नवाज शरीफ आक्रोश की आग को कुछ हल्का करने की कोशिश करते हैं, ताकि सेना के प्रकोप से मरियम को बचाया जा सके, लेकिन जो लोग फौज को जानते हैं। उनके मुताबिक बाजवा और आर्मी एक ही हैं और उन्हें कमजोर समझना भूल होगी। जलील होने के बाद भी जनरल बाजवा इतनी आसानी से हार नहीं मानेंगे। 2007 तो सभी को याद ही होगा, जब बेनजीर को धमाके से उड़ा दिया गया था।
किसने मारा था उनको, ये पूरी दुनिया को पता है। पाकिस्तान में भी गुपचुप तरीके से बात होती है। ऐसे में मरियम नवाज शरीफ समेत PDM के दूसरे नेताओ को भी सावधान रहना चाहिए, क्योंकि PDM के आंदोलन को बाजवा ने बहुत गंभीरता से लिया है। पिछले दिनों मरियम के पति की गिरफ्तारी भी इसी बात का संकेत है।
प्रधानमंत्री बनना तय है !
हालांकि जिस तरह से मुल्क ने मरियम को अपनी बेटी की तरह स्वीकार किया है...उन्हें प्यार दिया...ऐसे में उनके खिलाफ सेना की साजिश आसान नहीं होगी...और अगर मरियम का कद ऐसे ही बड़ा होता गया..तो वो दिन दूर नहीं जब उनका सितारा भी बेनजीर की तरह ही पाकिस्तान की सियासत में चमक उठेगा...और तख्त ए पाकिस्तान उनकी खिदमत में झूम उठेगा।
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