नई दिल्ली: बीते ठीक 1 महीने से जंगी धमाके झेल रहे नागोरनो-काराबाख से एक ऐसी खबर आई है, जो हिंदुस्तान के हर परिवार, हर नौजवान और देश के हर नेता को जाननी चाहिए। अक्सर कहा जाता है कि नेता सिर्फ नेतागीरी करते हैं, वो अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर या नेता तो बनाते हैं। लेकिन कभी फौजी बनाकर बॉर्डर पर नहीं भेजते। हालांकि आर्मीनिया के सांसद और नेता जो कर रहे हैं, उससे बड़ी सीख लेने की जरूरत है।
अजरबैजान और तुर्की की ताकतवर सेना नागोरनो-काराबाख में टारगेट किलिंग कर रही है। चुन-चुनकर सैनिकों पर बम बरसाए जा रहे हैं। हर धमाके में सैनिक शहीद हो रहे हैं। स्कूल से लेकर अस्पताल तक कोहराम मचा हुआ है। सच्चाई है कि अजरबैजान और तुर्की की सेनाएं काराबाख के गांवों पर कब्जा करते जा रहे हैं।
कई विशेषज्ञों ने युद्ध के पहले हफ्ते ही ऐलान कर दिया था कि इस जंग में आर्मीनिया की कमर टूट जाएगी, लेकिन आज आर्मीनिया के लोहा इरादों की दुनिया कायल हो गई है। दुनिया में तंज कसा जाता था कि जब देश को जरूरत होती है तो कोई नेता अपने बेटों को मरने के लिए बॉर्डर पर नहीं भेजता, लेकिन आर्मीनिया ने ये कविता बदल दी है।
भीषण जंग में अपना देश बचाने के लिए आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान खुद लगातार फार्वर्ड पोस्ट का दौरा कर रहे हैं। सैनिकों के साथ खड़े होकर उनका जोश हाई कर रहे हैं। लेकिन आर्मीनिया के प्रधानमंत्री की पत्नी अन्ना हकोबयान तो उनसे चार कदम आगे निकल गईं। अपने देश की हिफाजत करने और अपने मुल्क के लोगों को बढ़-चढ़कर सेना में शामिल होने का संदेश देने के लिए वो खुद जंगी कमांडो बन गईं हैं।
फर्स्ट लेडी 27 अक्टूबर से कमांडो ट्रेनिंग ले रही हैं
वह 13 लड़कियों के स्पेशल कमांडो ग्रुप का हिस्सा है
अन्ना काराबाख की रक्षा के लिए जंग में शामिल होंगी
अन्ना राइफल, मशीनगन चलाना सीख चुकी हैं
युद्ध के दांव-पेंच सीखने के लिए फार्वर्ड पोस्ट पर पहुंचीं
आर्मीनिया के प्रधानमंत्री का 20 साल का बेटा भी जंग के लिए तैयार है। निकोल और अन्ना के 20 साल के बेटे अशोट ने अपनी इच्छा से युद्ध में वॉलंटियर बनने के लिए नामांकन करवाया है। आर्मीनिया के नेता जंग में सिर्फ तस्वीर खिंचवाने के लिए नहीं पहुंच रहे, आर्मीनिया के कई सांसद अब तक इस जंग के काम आ चुके हैं। आर्मीनिया के मंत्रियों में युद्ध के मैदान में उतरने की होड़ लगी है।
बुजुर्ग महिलाएं बंदूक लेकर घर की देहरी की पहरेदारी पर बैठ गई हैं। स्कूलों में बच्चे गन असेंबल करना सीख रहे हैं और कॉलेज-यूनिवर्सिटीज के आगे सेना में भर्ती होने के लिए लाइन लगी है। आर्मीनिया के प्रधानमंत्री की पत्नी ने जबसे कमांडो ट्रेनिंग लेकर युद्ध में जाने के ऐलान किया है। तबसे बड़ी तादात में लड़कियां फौज ज्वाईन करने निकल पड़ी हैं।
आर्मीनिया की फर्स्ट लेडी के साथ 98 महिलाओं का पहला दल फार्वर्ड पोस्ट पर युद्ध में शामिल हो चुका है। 400 और जंगबाज लड़कियों की दूसरी टीम तैयार है। आर्मीनिया की फर्स्ट लेडी अन्ना हकोबयान दो साल पहले यानी 2018 में यूएन की शांतिदूत रह चुकी हैं। वह कलम की सिपाही हैं और अपना अखबार निकालती हैं, लेकिन आज जब देश को जरूरत है तो कलम पकड़ने वाले हाथों ने इकलौते बेटे के साथ हथियार उठा लिए हैं।
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