नई दिल्ली: नागोरनो-काराबाख की जंग अब धर्मयुद्ध बन गई है। इस धर्मयुद्ध में अब फ्रांस, रूस अमेरिका भी कूद गया है। तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान खुलकर इस्लामिक कट्टरता की तरफदारी कर रहे हैं तो फ्रांस में एक टीचर की निर्मम हत्या के बाद से जेहादी मानसिकता के खिलाफ यलगार हो चुकी है। ये सब उस वक्त हो रहा है जब सेंट्रल एशिया में रोज बारूद बरस रहा है।
27 दिनों से जलते सेंट्रल एशिया की आग नहीं बुझी तो महाशक्तियों सामने आ ही गईं। पुतिन भी सामने आ गए और अमेरिका एक्टिव हो गया। तुर्की ने नाटो से बगावत कर दी और फ्रांस ने खुलकर आर्मीनिया के साथ अपना पक्ष चुन लिया। कुल मिलाकर जिस खेमेबंदी को लेकर अभी तक सिर्फ कयास लगाए जा रहे थे, वो हकीकत हो गई।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा, 'नागोरनो-काराबाख में 5000 से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके हैं। मैं आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं कि 10 साल तक तक चली अफगानिस्तान की जंग में सोवियत यूनियन और सोवितय आर्मी के 13,000 लोगों की मौत हुई थी। लेकिन इस जंग में इतने कम वक्त में ही 5000 से ज्यादा सैनिकों की मौत हो चुकी है। क्या घायलों और पीड़ितों की कोई गिनती है? हजारों बच्चे दर्द में हैं।'
रूसी राष्ट्रपति ने सिर्फ नागोरनो-काराबाख में मरने वालों का आंकड़ा दिया, लेकिन आर्मीनिया और अजरबैजान की तरफ कितने लोगों की मौत हो चुकी है। इस युद्ध के 27 दिनों में कितनी तबाही मच चुकी है। इसकी ठीक जानकारी तो अभी तबाही झेलने वाले देशों तक को पता नहीं है, लेकिन इसी बयान में पुतिन ने ये भी ऐलान कर दिया कि अब अमेरिका इस विवाद के समाधान में रूस की मदद करेगा।
विवाद सुलझाने में अमेरिका मदद करेगा?
पुतिन आर्मीनिया के साथ खुलकर खड़े होंगे या नहीं, इसे लेकर कयासों में कोई कमी नहीं थी। पुतिन ने साफ कर दिया कि वो हर हाल में आर्मीनिया के साथ संधि का पालन करेंगे। पुतिन अब तक खामोश थे, क्योंकि वो चाहते थे कि ये खून खराबा जल्दी से जल्दी रूक जाए, लेकिन अब ऐसा होता दिख नहीं रहा। आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान तो इस कदर नाउम्मीद हो गए कि वो फेसबुक लाइव पर आकर बोले, अब आर-पार के अलावा कोई रास्ता बचा ही नहीं है।
कई दिनों से खामोश बैठे पुतिन बोले तो तुरंत आर्मीनिया के प्रधानमंत्री का भी बयान आ गया। अपने लोगों को साफ बता दिया कि अब जंग के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। निकोल पिशिन्यान ने ऐसा बिना किसी सपोर्ट के नहीं बोला। साफ है कि निकोल के सिर पर पुतिन ने हाथ रख दिया है। पुतिन ने बयान दिया कि आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल ने कूटनीतिक समाधान की किसी भी संभावना को खारिज किया, उसी वक्त आर्मीनिया के राष्ट्रपति आर्मेन सरकिसियन का फ्रांस में इस्तकबाल हो रहा था।
आर्मीनिया के राष्ट्रपति आर्मेन सरकिसियन का फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने आगे बढ़कर स्वागत किया। उन्हें रेड कार्पेट वेलकम दिया और दोनों राष्ट्रपति लंबी बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि अब वाकई नागोरनो काराबाख के मुद्दे को जड़ से खत्म कर देने का वक्त आ गया है। फ्रांस पहुंचे आर्मीनिया के राष्ट्रपति ने तुर्की को जमकर लताड़ लगाई। उन्होंने नाम नहीं लिया, लेकिन साफ कहा कि नाटो का एक देश दुनिया में इस्लामिक टेरेरिज्म फैला रहा है।
आर्मीनिया के राष्ट्रपति ने फ्रांस में जाकर तुर्की को खरी-खरी सुनाईं। ये जानते हुए भी कि तुर्की और फ्रांस दोनों नाटो देश हैं यानी दोनों के बीच एक दूसरे के साथ रक्षा संधि है, लेकिन अब इस संधि के खास मायने नहीं रह गए हैं। क्योंकि तुर्की अब नाटो देशों पर वजन बन गया है। तुर्की कट्टरपंथ और इस्लामी आतंकवाद को आगे बढ़ा रहा है और फ्रांस में एक टीचर की हत्या के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ माहौल गर्म है।
युद्ध के 27वें दिन अज़रबैजान के विदेश मंत्री जेहुन बायरामोव और आर्मीनिया के विदेश मंत्री जोहराब मान्तसा कान्यान ने अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो के साथ वॉशिंगटन में अलग-अलग मुलाकात की। ट्रंप के मंत्री ने दोनों का पक्ष जाना और फैसला ले लिया। सुपरपावर खेमेबंदी कर रही हैं। साफ-साफ कहें तो वर्ल्ड वॉर के चावल बांटे जा रहे हैं, सेनाएं तैयार हो रही हैं और कुरुक्षेत्र बस सजने ही वाला है।
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