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Somwar Ke Upay: आज साल 2022 के मई महीने का पहला और वैशाख महीने का तीसरा सोमवार है। ऐसे तो हिंदू धर्म में सभी दिनों का अपना-अपना अलग-अलग महत्व है। हिंदू धर्म में पुरातन काल से ही सोमवार का संबंध भोले नाथ से रहा है। इस दिन को भेले भंडारी (Bhole Bhandari) के भक्त खास मानते हैं और उनकी अराधना करते हैं।
मान्यता के मुताबिक सोमवार के दिन व्रत और पूजा करने से शिव जी अपने भक्तों पर बहुत जल्द खुश होते हैं। वे भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। व्रत और पूजा करने वालों के जीवन से दुख, रोग, क्लेश व आर्थिक तंगी दूर होती है। कुवांरी कन्याओं द्वारा इस दिन व्रत व शिव पूजन किए जाने से उनका विवाह हो जाता है। इतना ही नहीं उन्हें भोलेनाथ (Bholenath) जैसा मनचाहा वर मिलता है।
सोमवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद मंदिर जाएं या घर पर ही विधिविधान से शिव जी (Shivji) की पूजा करें। सबसे पहले भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल और दूध से स्नान कराएं। इसके बाद उन पर चंदन, चावल, भांग, सुपाड़ी, बिल्वपत्र और धतूरा चढ़ाएं। भोग लगाने के बाद आखिरी में शिव जी की विधिविधान से आरती करें।
धर्म विद्वानों का मानना है कि शिव भक्तों को सोमवार के दिन रुद्राष्टकम का पाठ जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि इससे मनोकामनाओं की पूर्ति त्वरित होती है। हालांकि, इस स्तोत्र का सटीक पाठ करने से ही लाभ होता है।
सोमवार को जरूर करें ये काम (Somwar Ke Upay)
- मंदिर में जाकर शिव जी (Shivji) को दूध और मिश्री चढ़ाएं। अगर मंदिर न जा सके तो शिव जी को घर में ये चीजें अर्पित करें
- शिव जी को बिल्पपत्र सर्वाधिक प्रिय है। इसलिए अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सोमवार को शिव शंकर को 11 बिल्व पत्र चढ़ाएं
- इसके अलावा गंगाजल से उनका हर सोमवार अभिषेक करें। मान्यता है कि इससे भगवान शंकर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं
- ॐ नम शिवाय मंत्र के साथ इन्हें मौसम का कोई मीठा फल अर्पित करें
- मान्यता के मुताबिक शिव जी (Shivji) को इमरती चढ़ाकर भी प्रसन्न किया जा सकता है।
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शिव रुद्राष्टक स्तोत्र:
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ॥
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥1॥
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ॥
करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥2॥
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् ॥
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥3॥
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ॥
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥4॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥
त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥5॥
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥
न यावद् उमानाथपादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् ॥
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥
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