मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य: शरद पूर्णिमा का कल है। हिंदू धर्म में इस दिन का अपना खास महत्व है। मान्यता के मुताबिक शरद पूर्णिमा पर अमृतमयी चांद अपनी किरणों से स्वास्थ्य का वरदान देता है। यह सभी पूर्णिमा की रातों में से सबसे अहम रातों में से एक है। इसी से ही शरद ऋतु का आगमन होता है। हिंदू धर्म के आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा होती है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार अश्विन शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली पूर्णिमा पर, चंद्रमा, पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने से सोलह कला संपूर्ण होता है। इस रात्रि में चंद्र किरणों में अमृत का निवास रहता है। अतः उसकी रश्मियों से अमृत और आरोग्य की प्रप्ति होती है। मान्यता है कि इस रात, ऐसे मूहूर्त में, चंद्र किरणों में कुछ रासायनिक तत्व, मौजूद होते हैं जो शरीर को बल प्रदान करते हैं। निरोग बनाते हैं तथा संतान प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की आराधना की जाती है। शरद पूर्णिमा से ही हेमंत ऋतु का आरंभ अर्थात ठंड बढ़नी शुरु हो जाती है। इस बार की पूर्णिमा भी खगोलीय दृष्टि से ऐतिहासिक होगी क्योंकि यह ब्लू मून की रात होगी। इसके बाद नीला चंद्र 19 साल बाद ही देखा जा सकेगा।
शरद पूर्णिमा
पूर्णिमा आरम्भ: अक्टूबर 30, 2020 को 17:47:55 से
पूर्णिमा समाप्त: अक्टूबर 31, 2020 को 20:21:07 पर.
यह नीली शरद पूर्णिमा सवार्थ सिद्धि योग तथा मार्गी हो चुके शनि में, 30 अक्तूबर ,शुक्रवार की सायं 05 बजकर 47 मिनट पर आरंभ होगी और अगले दिन शनिवार की रात 08 बजकर 21 मिनट तक रहेगी। यदि आप शरद पूर्णिमा का व्रत रखना चाहते हैं तो शास्त्रानुसार, यह व्रत और श्री सत्यनारायण व्रत 21 तारीख शनिवार को ही रखना चाहिए। इसी दिन महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती भी है तथा कार्तिक मास स्नान भी आरंभ हो जाएंगे। इस दिन कोजागर व्रत जिसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं, रखा जाता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा अर्थात रासोत्सव भी माना जाता है। इस रात चंद्र किरणों में विशेष प्रभाव माना जाता है जिसमें से अमृत सुधा बरसती है।
शरद पूर्णिमा पर संतान प्राप्ति के उपाय
जिन दंपत्तियों को संतान न होने की समस्या है, वे शरद पूर्णिमा पर यह प्रयोग जरूर करें।
पूर्णिमा पर सभी पौष्टिक मेवों सहित गाय के दूध में खीर बना कर खुले स्थान पर रात्रि में ऐसे सुरक्षित रखें कि कोई पशु- पक्षी इसे खा न सके और पूरी रात, चंद्र किरणें अपना अमृत इस पर बिखेरती रहें। इस खीर के पात्र को किसी तार पर बांध कर जमीन से उंचा लटका सकते हैं ताकि कीड़े, चाीटियां या बिल्ली आदि इसमें मुंह न लगा सकें। प्रातः काल निःसंतान दंपत्ति सर्वप्रथम इसका भोग गणेश जी को लगाएं, फिर एक भाग ब्राहमण, एक भिखारी ,एक कुत्ते, एक गाय, एक कउवे को देकर फिर पति - पत्नी स्वयं खाएं और परिवार के सदस्यों में भी बांटें।
यदि पारिवारिक क्लेश रहता है तो यह खीर उन सभी सदस्यों को दें जिनसे आपके मतभेद हैं। यह उपाय सदियों से ग्रामीण अंचलों में सास- बहु के मध्य उत्पन्न होने वाले मतभेदों को समाप्त करने के लिए किए जाते रहे हैं। आज के युग में भी शरद पूर्णिमा के अवसर पर चंद्र किरणों से प्रभावित यह खीर रिश्तों की कड़वाहट समाप्त कर, मिठास घोलने मे उतनी ही सक्षम है जितनी भगवान कृष्ण की रासलीला के समय थी।
शरद पूर्णिमा का महत्व
मान्यता है कि इसी पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने मुरली वादन करके यमुना तट पर गोपियों के साथ रास रचाया था। इसी आश्विन पूर्णिमा से कार्तिेक स्नान आरंभ होंगे। स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिक मास के समान और कोई मास नहीं होता अतः इस मास में कार्तिक महातम्य का विधिपूर्वक पाठ करना चाहिए या सुनना चाहिए।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.