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Mohini Ekadashi 2022: आज मोहिनी एकादशी का पावन पर्व है। आज के दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के भक्त उनकी खास तरीके से पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता के मुताबिक मोहिनी एकादशी के दिन व्रत रखने और पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु की आराधना करने से मनुष्य को सभी कष्टों और पापों से मुक्ति मिलती है। मोहिनी एकादशी को सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला और सब पापों को हरने वाला दिन माना जाता है।
पद्म पुराण के मुताबिक जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में पूछा तो श्रीकृष्ण ने भगवान राम का स्मरण करते हुए युधिष्ठिर से कहा, ऐसा ही सवाल भगवान राम ने त्रेतायुग में महर्षि वशिष्ठ से किया था। जिसका जवाब देते हुए महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी मोहिनी एकदाशी होती है। इस एकादशी को करने के पापों का नाश होता है और व्यक्ति संसार के मोह माया से मुक्त हो जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था, उस दिन वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि थी। इस दिन विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया था, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है।
मोहिनी एकादशी व्रत की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। पौराणिक मान्याता और कथाओं के मुताबिक मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए मोहिनी अवतार धारण किया था, इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों पराजित करने के लिए मोहिनी रूप धारण करके, समुद्र मंथन से निकले हुए अमृत को देवताओं को पिला दिया था, जिससे देवासुर संग्राम में राक्षसों की पराजय हुई। देवताओं का स्वर्ग पर फिर से अधिकार स्थापित हुआ था। श्री हरि नारायण विष्णु के मोहिनी रूप के कारण ही यह कार्य संपन्न हो सका, इसलिए मोहिनी एकादशी की महत्ता अत्यधिक बढ़ जाती है।
मोहिनी एकादशी कथा (Mohini Ekadashi Katha)
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व महर्षि वशिष्ठ ने प्रभु श्रीराम को बताया था। कथा के मुताबिक बहुत समय पहले सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उस नगर में धनपाल नामक एक वैश्य रहता था, जो काफी अमीर था और धार्मिक होने के साथ नारायण का भक्त भी था।
लोगों के हित में वो तमाम कल्याणकारी काम करवाता था। धनपाल का बड़ा पुत्र बुरी संगत में आ गया और वेश्याओं के चक्कर में पड़ गया। उसकी आदतों को देखकर धनपाल ने उसे घर से निकाल दिया। इसके बाद धनपाल का पुत्र चोरी आदि करने लगाए। एक बार चोरी करते हुए उसे सिपाहियों ने पकड़ लिया और कारागार में डाल दिया।
कुछ समय बाद उसकी ये दुर्दशा हो गई कि उसे नगर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। इसके बाद वो जंगल में पशु पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा। एक दिन जंगल में भटकते हुए वो कौटिन्य ऋषि के आश्रम पहुंचा। ऋषि उस समय गंगा स्नान करके आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों की छींटें जब धनपाल के पुत्र पर पड़ी तो उसे सद्बुद्धि आयी और अपने पाप का अहसास हुआ। तब उसने ऋषि के सामने अपने पापों को स्वीकारते हुए कहा कि वे उसका मार्गदर्शन करें और इन पापों से मुक्ति पाने का रास्ता बताएं।
तब ऋषि कौटिन्य ने उसे मोहिनी एकादशी व्रत का महात्मय समझाते हुए ये व्रत विधि विधान से रहने का सुझाव दिया। इस व्रत के प्रभाव से धीरे धीरे वैश्य पुत्र के सभी पाप मिट गए और मृत्यु के पश्चात वो गरुड़ पर सवार होकर वैकुंठ को पहुंचा।
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