नई दिल्ली: आज से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है। पितृ पक्ष की शरुआत गणेश विसर्जन और अनंत चतुर्दशी के बाद शुरू होता है। पितृ पक्ष हर साल श्राद्ध भाद्रपद शुक्लपक्ष पूर्णिमा से शुरू होकर अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक चलता है। श्राद्ध पूरे 16 दिन के होते हैं। मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान कराया जाता है। कई लोग अपने घरों में ही पूजा-पाठ और खाना बनाकर पितरों को भोजन कराते हैं तो कुछ विष्णु का नगर यानी गया में जाकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष के दौरान पितरों को पिंडदान कराया जाता है। कई लोग अपने घरों में ही पूजा-पाठ और खाना बनाकर पितरों को भोजन कराते हैं तो कुछ विष्णु का नगर यानी गया में जाकर अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
मान्यता के मुताबिक अच्छे कर्म दिखने पर पितृ अपने वंशजों पर कृपा करते हैं। श्राद्ध में पितरों के नाम से तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज व दान करना पुण्यकारी होता है। अगर कोई अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता या श्रद्धापूर्वक नहीं करता तो पितृ नाराज हो जाते हैं। इससे पितृ दोष लगता है। कहा जाता है कि अगर पितृ खुश है तो ईश्वर की भी आप पर कृपा होती है। पितरों को खुश करने के लिए हमें श्रद्धाभाव के साथ उनका तर्पण, पूजा, ब्रह्मभोज एवं दान करना चाहिए। श्राद्ध इसी श्रद्धा का प्रतीक होते हैं।
हिंदू धर्म में पितृ ऋृण से मुक्ति के लिए श्राद्ध मनाया जाता है। हिंदू शास्त्रों में पिता के ऋृण को सबसे बड़ा और अहम माना गया है। पितृ ऋृण के अलावा हिन्दू धर्म में देव ऋृण और ऋषि ऋृण भी होते हैं, लेकिन पितृ ऋृण ही सबसे बड़ा ऋण है। इस ऋृण को चुकाने में कोई गलती ना हो इसीलिए इस दौरान खास नियम बरते जातें हैं।
श्राद्ध के दिन क्या करें और क्या नहीं...
- श्राद्ध हमेशा दोपहर के बाद ही करें जब सूर्य की छाया आगे नहीं पीछे हो
- कभी भी ना सुबह और ना ही अंधेरे में श्राद्ध करें
- इस दौरान ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें, ऐसा करना शुभ माना जाता है
- ब्राह्मणों को लोहे के आसन पर बिठाकर पूजा ना करें और ना ही उन्हें केले के पत्ते पर भोजन कराएं
- पिंडदान करते वक्त जनेऊ हमेशा दाएं कंधे पर रखें
- पिंडदान करते वक्त तुलसी जरूर रखें
- कभी भी स्टील के पात्र से पिंडदान ना करें, बल्कि कांसे या तांबे या फिर चांदी की पत्तल इस्तेमाल करें
- पिंडदान हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करें
- पिता का श्राद्ध बेटा ही करे या फिर बहू करे
- श्राद्ध करने वाला व्यक्ति श्राद्ध के 16 दिनों में मन को शांत रखें
- श्राद्ध हमेशा अपने घर या फिर सार्वजनिक भूमि पर ही करे
- किसी और के घर पर श्राद्ध ना करें ।
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