विजय शंकर, डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर: यूरोप खासकर फ्रांस में इन दिनों मुस्लिमों के बीच एक अजीब सी बेचैनी है। उन्हें डर सता रहा है कि कहीं यूरोपीय समाज में वो और अगल-थलग न पड़ जाएं। फ्रांस एक ऐसा कानून बनाने की तैयारी कर रहा है, जिससे इस्लामिक कट्टरपंथियों को रोका जा सके।
बिल के मसौदे पर फ्रांस सरकार की कैबिनेट मुहर लगा चुकी है। माना जा रहा है कि अगर सब कुछ राष्ट्रपति इमेन्यूएल मेक्रो की योजना के मुताबिक हुआ तो 2021 के शुरुआत में ही कट्टरपंथियों को रोकने वाला बिल कानून की शक्ल ले लेगा। भले ही राष्ट्रपति मेक्रो दलील दे रहे हों कि प्रस्तावित कानून न तो किसी मजहब के खिलाफ नहीं है, न ही इस्लाम के खिलाफ। इसके बाद भी फ्रांस के मुसलमान बहुत डरे हुए हैं।
कट्टरपंथियों पर फ्रांस का एक्शन
फ्रांस ने हाल में इस्लामिक कट्टरपंथियों के कई हमले झेले हैं। इससे वहां के समाज में उन्हें और ज्यादा शक की नज़रों से देखा जाने लगा है। फ्रांस के प्रस्तावित नए कानून से देश की सभी मस्जिदों की निगरानी बढ़ाई जाएगी। मस्जिदों को मिलने वाली आर्थिक मदद और इमामों की ट्रेनिंग पर भी नजर रखने की तैयारी है। साथ ही होम-स्कूलिंग और हेट स्पीच पर भी लगाम कसने की तैयारी है। फ्रांस के इस रुख से कई मुस्लिम देश बहुत खफा हैं।
यूरोप में मुस्लिम परेशान क्यों है?
मुस्लिम देशों को डर है कि फ्रांस जिस राह पर चल रहा है, उसी रास्ते पर यूरोप के दूसरे देश भी आगे बढ़ सकते हैं। जर्मनी के बाडेन वुर्टेमबर्ग ने स्कूलों में बच्चियों के बुर्का और नकाब पहने पर रोक लगा रखी है। महिला टीचरों के लिए वहां ये कानून पहले से ही है।
अब सवाल उठता है कि दिक्कत कहां है? फ्रांस में 57 लाख से अधिक मुस्लिम रहते हैं। उन्हें डर सता रहा है कि फ्रांस के प्रस्तावित नए कानून से उनकी आजादी कम होगी, समाज उन्हें और ज्यादा शक की नज़रों से देखेगा। मुस्लिमों को ये भी डर सता रहा है कि निगरानी के नाम पर सरकार मस्जिदों को मिलने वाली फंडिंग पर भी रोक लगा सकती है, जिससे उनकी धार्मिक पहचान धुंधली हो सकती है।
यूरोप की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी करीब 2 करोड़ यानी 6 फीसदी है । इसमें वो मुस्लिम शामिल नहीं हैं, जो हाल के वर्षों में उथल-पुथल की वजह से बतौर शरणार्थी यूरोप में दाखिल हुए हैं। यूरोप में फ्रांस में आबादी के मामले में जर्मनी दूसरे नंबर है, ब्रिटेन तीसरे और इटली चौथे नंबर पर।
खुद यूरोप के लोगों की भी सोच है कि दो-तीन पीढ़ियों से अलग-अलग मुल्कों में रहनेवाले मुस्लिम भी वहां के समाज में ज्यादा घुल-मिल नहीं पाते और अपनी आबादी वाले खास पॉकेट में ही खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली जैसे अच्छी-खासी मुस्लिम आबादी वाले मुल्कों में भी सामाजिक अलगाव बेहद साफ दिखता है, क्योंकि मुसलमानों के बच्चे यूरोपीय स्कूलों में नहीं जाते और वो राजनीतिक-आर्थिक तौर पर भी खुद को अलग रखते हैं ।
राजनीतिक बिसात पर मुस्लिम !
राजनीतिकरण सभी धर्मों का हुआ है। लेकिन, इस मामले में इस्लाम सबसे ऊपर है। यूरोप में भी मुस्लिमों को लेकर जमकर राजनीतिक तवा गर्म किया जा रहा है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि फ्रांस में भी राष्ट्रपति इमेन्यूएल मेक्रो नए कानून के जरिए वोटो का ध्रुवीकरण करना चाहते हैं। फ्रांस में 2022 में चुनाव होने हैं और अगर मुस्लिम कट्टरपंथियों के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो मेक्रो की लॉटरी लगनी तय है।
पोलैंड में भी मुस्लिम शरणार्थियों पर रोक लगाने के नाम पर एक पार्टी सत्ता में भी आ चुकी है। बेल्जियम से लेकर स्वीडन तक ध्रुवीकरण के नाम पर तवा गर्म करने की कोशिश की जा रही है। ऐसा ही ट्रेंड पूरे यूरोप में देखने को मिल रहा है। इसीलिए, मध्यमार्गी पार्टियों के नेता भी मुस्लिमों पर हमला बोलने से नहीं चूक रहे हैं।
मुस्लिम वर्ल्ड में वर्चस्व की लड़ाई
आज की तारीख में मुस्लिम वर्ल्ड के देश तीन हिस्सों में बंटे हुए है। टर्की, संयुक्त अरब और ईरान के बीच एक-दूसरे पर बढ़त की होड़ लगी है। इस्लामिक देशों की सबसे बड़ी छतरी का नाम है ऑगनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन। इसमें 57 देश शामिल हैं, उसमें भी एशिया के 27 देश हैं।
टर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन हमेशा अपने मुल्क को इतिहास के झरोखे में देखते हैं, उनके दिमाग में विशाल ऑटेमन साम्राज्य का नक्शा घूमता रहता है। अर्दोआन की सोच है कि सिर्फ टर्की ही इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। ऐसे में अर्दोआन सऊदी के वर्चस्व वाले ओआईसी के समानांतर एक नई छतरी तानने के लिए पूरी ताकत झोंके हुए हैं।
वहीं, सऊदी अरब को लगता है कि हाउस ऑफ सऊद के नियंत्रण में इस्लामिक पवित्र स्थल मक्का और मदीना हैं। ऐसे में इस्लामिक दुनिया का नेतृत्व वही कर सकता है। सऊदी अरब को अमेरिका का भी समर्थन हासिल है।
इस्लामिक वर्ल्ड का तीसरा बड़ा खिलाड़ी है-ईरान, जहां शिया मुसलमान हैं। ईरान जानता है कि सुन्नी वर्चस्व वाले इस्लामिक दुनिया का वो नेतृत्व नहीं कर सकता है । लेकिन, ईरान सीधे अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देता आ रहा है। इस्लामिक दुनिया के छोटे-छोटे देशों ने अपनी सहूलियत के हिसाब से पाला चुन रखा है।
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मजहब है, इसके अनुयायी पूरी दुनिया में फैले हुए है । इस्लाम को मानने वालों की तादाद करीब 2 अरब है। लेकिन, अमेरिका में हुए 9/11 के बाद से आतंकी हमलों को खास मजहबी चश्मे से देखा जाने लगा। आतंकी संगठन अल-कायदा और आईएसआईएस के हमलों ने मुस्लिमों को लेकर दुनिया में नए तरह का शक पैदा किए। यूरोप, एशिया और अमेरिका में इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर नए तरह की राजनीति जारी है, जिसकी कीमत चुका रहे हैं सीधे-साधे करोड़ों मुसलमान।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
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