मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य : देशभर में मकर संक्रांति की तैयारी जोरों पर है। धार्मिक ग्रंथों में मकर संक्रांति के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस बार 14 जनवरी की महोदरी नामक ,मकर संक्रांति के अवसर पर 5 ग्रहों का संयोग बहुत शुभदायी बन रहा है। सूर्य , चंद्रमा, शनि, बुध और गुरु अर्थात 5 ग्रह ,मकर राशि में होंगे। पौष शुक्ल प्रतिपदा, श्रवण नक्षत्र कालीन, सुबह 8 बजकर 14 मिनट पर मकर लग्न में प्रवेश करेगी। यों तो संक्राति पूरा दिन रहेगी परंतु पुण्य काल दोपहर 2 बजकर 38 मिनट तक ही रहेगा।
मकर संक्राति का खगोलीय तथ्य
नवग्रहों में सूर्य ही एकमात्र ग्रह है जिसके आस पास सभी ग्रह घूमते हैं। यही प्रकाश देने वाला पुंज है जो धरती के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन प्रदान करता है। प्रत्येक वर्ष 14 जनवरी को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है जिसे सामान्य भाषा में मकर संक्रान्ति कहते हैं। यह पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने और उत्तरायण प्रारंभ होने पर मनाया जाता है। वर्ष में 12 संक्रांतियां आती है। परंतु विशिष्ट कारणों से इसे ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
आज के दिन का पौराणिक महत्व भी खूब है। सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था।
मकर संक्रांति का भौगलिक महत्व
जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है, उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। धरती का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना ‘क्रान्ति चक्र’ कहलाता है। इस परिधि को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनी हैं। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी में जाना ‘संक्रान्ति ’ कहलाता है। यह एक खगोलीय घटना है जो साल में 12 बार होती है। सूर्य एक स्थान पर ही खड़ा है, धरती चक्कर लगाती है। अतः जब पृथ्वी मकर राशि में प्रवेश करती है, एस्ट्रोनॉमी और एस्ट्रोलॉजी में इसे मकर संक्रान्ति कहते हैं।
इसी प्रकार सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। उत्तरायण आरंभ होते ही दिन बड़े होने लगते हैं। रातें अपेक्षाकृत छोटी होने लगती हैं। इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान,देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है।
मकर संक्रांति का ज्योतिषीय महत्व
ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य, कर्क व मकर राशियों को विशेष रुप से प्रभावित करते हैं। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में है। सूर्य मकर संक्रांति से पूर्व ,दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है अतः सर्दी के मौसम में दिन छोटे रहते हैं। इस दिन सूर्य के उत्तरायण में आने से दिन बड़े होने शुरु होते हैं और शरद ऋतु का समापन आरंभ हो जाता है। प्राण शक्ति बढ़ने से कार्य क्षमता बढ़ती है अतः भारतीय सूर्य की उपासना करते हैं। यह संयोग प्रायः 14 जनवरी को ही आता है।
मकर संक्रांति पर क्या करें ?
इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान,देव कार्य एवं मंगलकार्य करने से विशेष लाभ होता है। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने भी प्राण त्यागने के लिए इस समय अर्थात सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी। सूर्योदय के बाद खिचड़ी आदि बनाकर तिल के गुड़वाले लडडू प्रथम सूर्यनारायण को अर्पित करना चाहिए बाद में दानादि करना चाहिए। अपने नहाने के जल में तिल डालने चाहिए। इस दिन को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए विशेष फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुणा फल देता है।
मकर संक्रांति पर इस मंत्र का करें जाप
'ओम नमो भगवते सूर्याय नमः' या 'ओम सूर्याय नमः' मंत्र का जाप करें। माघ माहात्म्य का पाठ भी कल्याणकारी है। सूर्य उपासना कल्याण कारी होती है। सूर्य ज्योतिष में हडिड्यों के कारक भी हैं अतः जिन्हें जोड़ों के दर्द सताते हैं या बार बार दुर्घनाओं में फ्रैक्चर होते हैं उन्हें इस दिन सूर्य को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। पतंग उड़ाने की प्रथा भी इसी लिए बनाई गई ताकि खेल के बहाने, सूर्य की किरणों को शरीर में अधिक ग्रहण किया जा सके।
मकर संक्रांति पर इन चीजों का करें दान
- इस दिन तिल, गुड़, घी, खिचड़ी, कंबल और वस्त्र के दान की मान्यता है। कहा जाता है जो मकर संक्रांति के दिन इन चीजों का दान करते हैं उनपर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और उन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती है।
- देव स्तुति, पित्तरों का स्मरण करके तिल, गुड़, गर्म वस्त्रों कंबल आदि का दान जनसाधारण, अक्षम या जरुरतमंदो या धर्मस्थान पर करें। माघ मास माहात्म्य सुनें या करें।
- इस दिन खिचड़ी सेवन तथा इसके दान का विशेष महत्व है। इस दिन को खिचड़ी भी कहा जाता है।
- इस दिन खिचड़ी के दान तथा भोजन को भी विशेष महत्व दिया गया है। उत्तर प्रदेश के लोग इसे ‘खिचड़ी ’ के रुप में मनाएंगे।
- यह संक्रान्ति काल मौसम के परिवर्तन और इसके संक्रमण से भी बचने का हैं। इसी लिए तिल या तिल से बने पदार्थ खाने व बांटने से मानव शरीर में उर्जा का संचार होता है।
- तिल मिश्रित जल से स्नान,तिल उबटन, तिल भोजन, तिल दान, गुड़ तिल के लडडू मानव शरीर को सर्दी से लड़ने की क्षमता देते हैं।
- बिहार और बंगाल में लोग तिल दान करते हैं।
- महाराष्ट्र में इस दिन गुड़ तिल बांटने की प्रथा है। यहां लोग ‘ ताल-गूल’ नामक हलवा बाटेंगे। यह बांटने के साथ साथ मीठा बोलने के लिए भी आग्रह किया जाता है।
- तमिलनाडु में इसे पोंगल के रुप में चार दिन मनाते हैं और मिट्टी की हांडी में खीर बनाकर सूर्य को अर्पित की जाती है। पुत्री तथा जंवाई का विशेष सत्कार किया जाता है।
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