Vishwakarma Puja 2020: आज देश भर में विश्वकर्मा पूजा मनाई जा रही है। आपको बता दें कि विश्वकर्मा पूजा हर वर्ष 17 सितंबर को ही मनाया जाता है। यह बंगाली माह भाद्र के आखिरी दिन भाद्र संक्रांति को मनाया जाता है, इसे कन्या संक्रांति भी कहा जाता है। मान्यता के मुताबिक आज के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए। इससे रोजगार और बिजनेस में तरक्की मिलती है। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को बधाई दी है।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भाद्रकृष्ण पक्ष की संक्रांति तिथि को हुआ था। ज्योतिषीय गणना के अनुसार आज के हिसाब से 17 सितंबर की तिथि थी। इसलिए हर साल 17 सितंबर के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सव यानी विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाता है।
क्या है विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा के समय राहुकाल का ध्यान रखा जाता है। आज का राहुकाल दोपहर 01:30 बजे से 03:00 बजे तक है। ऐसे में आप सुबह के समय पूजा कर लें, तो उचित रहेगा। वैसे कल 16 सितंबर को सुबह 06 बजकर 53 मिनट पर कन्या संक्रांति का क्षण था। कन्या संक्रांति के साथ ही विश्वकर्मा पूजा का मुहूर्त रहा।
आज का पंचांग
दिन: गुरुवार, शुद्ध आश्विन मास, कृष्ण पक्ष, अमावस्या तिथि।
आज का दिशाशूल: दक्षिण।
आज का राहुकाल: दोपहर 01:30 बजे से 03:00 बजे तक।
अमृत काल: दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से दोपहर 01 बजकर 33 मिनट तक।
अभिजित मुहूर्त: दिन में 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक।
विजय मुहूर्त: दोपहर 02 बजकर 23 मिनट से दोपहर 03 बजकर 12 मिनट तक।
विश्वकर्मा पूजा (जयंती) वाले दिन खास तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम में इसकी पूजा होती है। इसके अलावा मशीनों, औजारों की सफाई व पूजा की जाती है। लंका द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग के हस्तिनापुर आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना करने से सुख-समृद्धि और धन-धान्य घर में आती है।
ऐसे हुई थी भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। कहते हैं कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से जन्मे 'वास्तु' के सातवें पुत्र थे। जो शिल्पकार के जन्म थे। वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। माना जाता है कि अपने पिता की तरह ही ऋषि विश्वकर्मा भी वास्तुकला का आचार्य बनें। माना जाता है कि भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल भी ऋषि विश्वकर्मा ने ही बनाया था। माना जाता है कि भगवान शिव के लिए लंका में सोने के महल का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था। कहते हैं कि रावण ने महल की पूजा के दौरान इसे दक्षिणा के रूप में ले लिया था।
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