Vishwakarma Puja 2020: हिंदू धर्म में विश्वकर्मा को सृजन का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वह दुनिया के सबसे पहले इंजीनियर और वास्तुकार थे। हर साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती यानी विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है, लेकिन इस साल विश्वकर्मा पूजा की तीथि को उपापोह की स्थिति बनी हुई है। विश्वकर्मा पूजा 16 या 17 सितंबरइस वर्ष विश्वकर्मा पूजा की तिथि को लेकर थोड़ी उलझन की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोगों का कहना है कि आज यानी 16 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा है। लेकिन यह सही नहीं है।
मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म भाद्रकृष्ण पक्ष की संक्रांति तिथि को हुआ था। ज्योतिषीय गणना के अनुसार आज के हिसाब से 17 सितंबर की तिथि थी। इसलिए हर साल 17 सितंबर के दिन ही भगवान विश्वकर्मा का जन्मोत्सव यानी विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाता है।
गूगल ने इस साल विश्वकर्मा पूजा की तिथि 16 सितंबर बताया है। जिसके बाद कई वेबसाइट भी 16 सितंबर की तिथि बता रहे हैं। जबकि ज्योतिषीय गणना पर गौर करें तो हमेशा की तरह इस साल भी 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा का आयोजन शुभ होगा। इस साल आज यानी 16 सितंबर को कन्या संक्रांति तो है लेकिन कन्या राशि में सूर्य का प्रवेश शाम में 7 बजकर 7 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर यानी कल सूर्योदय कालीन मुहूर्त में करना शुभ रहेगा।
क्या है विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
भगवान विश्वकर्मा का जन्म भी 17 सितंबर को हुआ था। इससे कन्या संक्रांति का शुभ मुहूर्त और 17 तिथि का संयोग भी साथ में प्राप्त हो जाएगा। इस दिन सुबह 6 बजकर 28 मिनट से शुभ योग आरंभ हो रहा है जो 8 बजे तक रहेगा। इसके बाद 12 बजकर 35 मिनट से 3 बजकर 38 तक का समय बेहद ही शुभ रहेगा। इस बीच 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक राहुकाल भी रहेगा।
विश्वकर्मा पूजा (जयंती) वाले दिन खास तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम में इसकी पूजा होती है। इसके अलावा मशीनों, औजारों की सफाई व पूजा की जाती है। लंका द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग के हस्तिनापुर आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं। ऐसा माना जाता है कि इनकी आराधना करने से सुख-समृद्धि और धन-धान्य घर में आती है।
ऐसे हुई थी भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भगवान विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। कहते हैं कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से जन्मे 'वास्तु' के सातवें पुत्र थे। जो शिल्पकार के जन्म थे। वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। माना जाता है कि अपने पिता की तरह ही ऋषि विश्वकर्मा भी वास्तुकला का आचार्य बनें। माना जाता है कि भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल भी ऋषि विश्वकर्मा ने ही बनाया था। माना जाता है कि भगवान शिव के लिए लंका में सोने के महल का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था। कहते हैं कि रावण ने महल की पूजा के दौरान इसे दक्षिणा के रूप में ले लिया था।
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