नई दिल्ली: अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat) मनाया जाता है। इसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, सेहत और सुखमयी जीवन के लिए व्रत रखती हैं। तीज की तरह यह व्रत भी बिना आहार और निर्जला किया जाता है। बिहार, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह त्योहार खास तौर पर मनाया जाता है।
छठ पर्व की तरह जितिया व्रत पर भी नहाय-खाय की परंपरा होती है। यह पर्व तीन दिन तक मनाया जाता है। सप्तमी तिथि को नहाय-खाय के बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की समृद्धि और उन्नत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके बाद नवमी तिथि यानी अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है यानी व्रत खोला जाता है।
इस साल जितिया व्रत (Jitiya Vrat) 10 सितंबर यानी गुरुवार को रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चों के जीवन में सुख शांति बनी रहती है और उन्हें संतान वियोग नहीं सहना पड़ता है। इस दिन महिलाएं पितृों का पूजन कर उनकी लंबी आयु की भी कामना करती हैं। इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया-पिया जाता है। सूर्योदय के बाद पानी भी नहीं पी सकते हैं।
इस व्रत में माता जीवित्पुत्रिका और राजा जीमूतवाहन दोनों पूजा एवं पुत्रों की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना की जाती है। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाया पिया जा सकता है। इस व्रत में तीसरे दिन भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग खाए जानें की परंपरा है।
व्रत तिथि और का शुभ मुहूर्त
- इस बार आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 9 सितंबर की रात में 9 बजकर 46 मिनट पर प्रारंभ होगा और 10 सितंबर की रात 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
- 10 सितंबर को अष्टमी में चंद्रोदय का अभाव है, इसी दिन जिउतिया पर्व मनाया जाएगा।
- व्रत से एक दिन पहले सप्तमी 9 सितंबर की रात महिलाएं नहाय-खाए करेंगी।
- नहाय-खाय की सभी प्रक्रिया 9 सितंबर की रात 9 बजकर 47 मिनट से पहले ही करना होगा। क्योंकि 9 बजकर 47 मिनट के बाद अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी।
- जिउतिया व्रत का पारण करने का शुभ समय 11 सितम्बर की सुबह सूर्योदय से लेकर दोपहर 12 बजे तक रहेगा।
- व्रती महिलाओं को जिउतिया व्रत के अगले दिन 11 सितंबर को 12 बजे से पहले पारण करना होगा।
जितिया व्रत विधि
आश्विन मास की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत किया जाता है। यह उत्सव 3 दिनों तक चलता है। व्रत के एक दिन पहले ही यानी सप्तमी तिथि को नहाय खाय मनाया जाता है। अष्टमी तिथि लगते ही स्त्रियां निर्जला व्रत शुरु कर देती हैं। अष्टमी तिथि को पूरा दिन रात स्त्रियां बिना अन्न, जल और फल खाए रहती हैं। फिर अगले दिन यानि नवमी तिथि लगने पर जितिया व्रत का पारण किया जाता है। यहां पारण का मतलब व्रत खोलने से है। नवमी तिथि को शुभ मुहूर्त में व्रत खोला जाता है। व्रत खोलने से पहले दान-दक्षिणा निकाली जाती है। फिर उसके बाद ही व्रती स्त्री कुछ खा या पी सकती है।
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