मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य: आज धनतेरस के साथ-साथ छोटी दिवाली भी है। भगवान धन्वंतरी का जन्म त्रयोदशी के दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धन्वंतरी जब प्रकट हुए थे, तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। लोक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन खरीद्दारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है।
धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर, औषधि के देवता धन्वंतरि तथा सुख, समृद्धि तथा वैभव की देवी महालक्ष्मी की पूजा विधि विधान से की जाती है।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ मुहूर्त- 13 नवंबर, शुक्रवार – शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक।
वृषभ काल- शाम 5 बजकर 32 मिनट से शाम 7 बजकर 28 मिनट तक।
प्रदोष काल- शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 8 बजकर 7 मिनट तक।
धनतेरस पर आरोग्य के देवता धन्वंतरी की पूजा-अर्चना की जाए और दैनिक जीवन में संयम-नियम आदि का पालन किया जाए। देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धन्वंतरी भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालाकिं की धन की देवी हैं, परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य और लम्बी आयु भी चाहिए। यही कारण है दीपावली के पहले, यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं।
धनतेरस पूजा पूजा विधि
भगवान कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाना चाहिए, जबकि धन्वंतरि को पीली मिठाई और पीली चीज प्रिय है। पूजा में फूल, फल, चावल, रोली-चंदन, धूप-दीप का उपयोग करना चाहिए। शाम को परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा होकर प्रार्थना करें। सबसे पहले विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें स्नान कराने के बाद चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं। भगवान को लाल वस्त्र पहनाकर भगवान गणेश की मूर्ति पर ताजे फूल चढ़ाएं।
कुबेर की पूजा
कुबेर देव को धन का अधिपति कहा जाता है। माना जाता है कि पूरे विधि- विधान से जो भी कुबेर देव की पूजा करता है उसके घर में कभी धन संपत्ति की कभी कमी नहीं रहती है। कुबेर देव की पूजा सूर्य अस्त के बाद प्रदोष काल में करनी चाहिए।
लक्ष्मी की पूजा
सूर्य अस्त होने के बाद करीब दो से ढ़ाई घंटों का समय प्रदोष काल माना जाता है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी की पूजा इसी समय में करनी चाहिए। अनुष्ठानों को शुरू करने से पहले नए कपड़े के टुकड़े के बीच में मुट्ठी भर अनाज रखा जाता है।
कपड़े को किसी चौकी या पाटे पर बिछाना चाहिए। आधा कलश पानी से भरें, जिसमें गंगाजल मिला लें। इसके साथ ही सुपारी, फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने और अनाज भी इस पर रखें। कुछ लोग कलश में आम के पत्ते भी रखते हैं। इसके साथ ही इस मंत्र का जाप करें-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
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