अमित पांडेय, ज्योतिष शास्त्री: वसंत का उत्सव जहां प्रेम का वातावरण स्वंय प्रकृति निर्माण करती है। मौसम के परिवर्तन से नयी फसले तैयार होती है गेहूं में बालिये आ जाती है। आम के वृक्षों में फल लगने की शुरुआत हो जाती पूरी सृष्टि कामदेव और देवि रति के प्रेम और श्रृंगार की लीलाओं से आप्त हो जाता है।
प्रेम से ही श्रृष्टि की गति निर्बाध रुप से चलती रहती है। प्रेम और श्रृंगार के साथ साहित्य,काव्य की और ज्ञान की देवी माता सरस्वती की उपासना का विशेष पर्व भी इसी बसन्तोत्सव के प्रथम दिन अर्थात् माघ शुक्ल पंचमी के दिन भारतवर्ष में आदिकाल से मनाया जाता रहा है।
यदि किसी जातक के जन्म कुंडली में महामूर्ख होने का योग भी है तो भी वह जातक यदि आज के दिन विद्यारंभ करे तो वह पढ़ लिखकर सरस्वती का वरद पुत्र हो जाता है।यह माता वाग्देवी सरस्वती के कृपा का परिणाम होता है। मारकण्डेय पुराण के अनुसार आद्यशक्ति के सत्वगुणी स्वरुप महासरस्वती रजोगुणी महालक्ष्मी, तमोगुणी स्वरुप महाकाली है। माता सरस्वती की आराधना में अधिकांश सफेद वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। जैसे-दूध,दही,मक्खन सफेद फूल नारियल आदि।
पूजन की प्रक्रिया नवरात्र में होने वाले दुर्गापूजन जैसी ही होती है। नौवेद्य में विशेष रुप से माता सरस्वती को (बदरी) बेर के फल अर्पित किये जाते है। पूजन के समय माता के हंस पर विराजमान स्वरुप जिसमें हाथ में वीणा पुस्तक माला तथा संसार में ज्ञान का प्रकाश दे रही है ऐसे स्वरुप का ध्यान करना चाहिये। माता सरस्वती के कुछ सरल मंत्र भी है जिसके जप के प्रभाव से वाणी में ओज ज्ञान में वृध्दि विद्वानों से सम्मान मिलता है।
मूल मंत्र है- ऊँ श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा।। इस मंत्र का जप स्फटिक के माला पर किया जाये तो मंत्र अति शीघ्र सिध्द होता है।रुद्राक्ष और चन्दन की माला पर भी जप किया जा सकता है। यह मंत्र विद्यार्थियो के लिये पारस पत्थर के समान होता है।इसके अतिरिक्त
।।ऊँ ऐं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।।
।।ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै स्वाहा।।
एक बात तो सत्य है कि माता सरस्वती की आराधना का फल अनन्त है। मंत्र जप तथा हवन के बाद आरती भी अवश्य करनी चाहिए। सरस्वती जी ज्ञान की देवी है। अतः उनके सामने कलम और अपनी पाठ्यपुस्तकों को रखकर माता से आशीर्वाद के लिये प्रार्थना करनी चाहिए।
पुराणों के अनुसार आद्यशक्ति ने अपने आप को भगवान श्री कृष्ण शरीर से पांच रुपो में प्रकट किया था। राधा,पद्मा,सावित्री,दुर्गा और सरस्वती जिसमें माता सरस्वती प्रभु श्री कृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न हुई थी।
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