नई दिल्ली : बुद्धि, विद्या और ज्ञान वाणी की देवी सरस्वती पूजा की देश भर तैयारी जोरों पर है। इस साल बसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा 16 फरवरी दिन मंगलवार को है। इसे श्री पंचमी, खटवांग जयंती और वागीश्वरी जयंती के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू कैलेण्डर के मुताबिक हर माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को माता सरस्वती की खास पूजा की जाती है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महाकाली, महालक्ष्मी आदि देवी-देवाताएं जरूरत होने पर महासरस्वती रूप में अवतरित होती हैं।
मान्यता के मुताबिक सच्चे मन से माता सरस्वती की आराधना करने से विद्या, बुद्धि और नाना प्रकार की कलाओं में सफल होता है तथा उनकी सभी अभिलाषाएं और मनोकामनाएं पूरी होती है। माता सरस्वती हंसवाहनी, श्वेतवस्त्रा, चारभुजाधारी और वीणावादनी है। इसी कारण संगीत और अन्य ललितकलाओं की भी अधिष्ठात्री देवी यह कहलाती हैं। शास्त्रों के मुताबिक मां सरस्वती की कृपा से ही महामूर्ख भी कालिदास बन जाता है।
ऐसे ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुई थीं मां सरस्वती
मान्यता के मुताबिक मां सरस्वती माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ब्रह्माजी के मुख से प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन को बसंत पंचमी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। पुराणों के मुताबिक एकबार ब्रह्माजी भ्रमण पर निकले थे, तब सारा ब्रह्मांड मूक नजर आ रहा था, चारों ओर अजबी सी खामोशी नजर आ रही थी, इसको देखकर ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना में कुछ कमी सी महसूस हुई। तब ब्रह्माजी के मुख से वीणा बजाती हुई मां सरस्वती प्रकट हुईं और संसार में ध्वनि और संगीत की लय गुंजने लगी।
भगवान कृष्ण से मिला था ये वरदान
पौराणिक कथा के मुताबिक देवर्षि नारद को श्री नारायण ने सरस्वती पूजा के आरंभ के बारे में बताते हुए कहा कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की थी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती से कहा कि प्रत्येक ब्रहमांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ मौके पर बड़े धूमधाम के साथ आपकी पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलय पर्यंत प्रत्येक कल्प में मनुष्य, देवता, मुनिगण, योगी, नाग, गंधर्व, राक्षस सहित सभी प्राणी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार उपचारों से तुम्हारी पूजा करेंगे। घड़े एवं पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। यह कह कर भगवान श्रीकृष्ण ने भी सर्वपूजित माता सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चायत ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अनंत, धर्म, मुनिगण, सनकगण, देवता, राजा, मनुगण ये सभी भगवती सरस्वती की उपासना करने लगे। तभी से सरस्वती माता सम्पूर्ण प्राणियों में सदा सुपूजित होने लगी।
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