नई दिल्ली। अभी इंडिया और इंग्लैंड के बीच चेन्नई में टेस्ट मैच खेला जा रहा है। ऐसे में क्रिकेट लवर्स को news24hindi गेंद से जुड़ी जानकारी से रूबरू करा रहा है। अक्सर आपने देखा होगा कि टेस्ट क्रिकेट के दौरान लाल रंग की गेंद, वन और दूसरे सीरीज के दौरान सफेद रंग और अब तो पिंक कलर की भी गेंद इस्तेमाल होने लगी है। आइए आपको बताते हैं ये क्यों और कब इस्तेमाल की जाती हैं। क्या है इसके पीछे की कहानी...
पारंपरिक क्रिकेट यानी जब क्रिकेट की शुरूआत हुई तब से खिलाड़ी लाल गेंद से इसे खेला करते थे। बाद में डे-नाइट मैच होने लगे और फ्लड लाइट में लाल गेंद को देखने में खिलाड़ियों को परेशानी होने लगी। ऐसे में वनडे और टी-20 क्रिकेट में सफेद गेंद का इस्तेमाल शुरू हो गया।
लाल रंग की गेंद (Red Ball) टेस्ट क्रिकेट में क्यों:
टेस्ट और प्रथम श्रेणी के क्रिकेट पहले दिन में ही हुआ करते थे। ऐसे में दिन में सफेद बॉल को देखने में खिलाड़ियों को दिक्कत होती थी। वहीं लाल बॉल आसानी से विजिबल था। इसके अलावा ऐसे मैच में खिलाड़ी White ड्रेस में होते थे। इसलिए भी गेंद का रंग रेड रखा जाता था। इसमें लाल गेंद पर सफेद रंग के धागे से सिलाई की जाती है।
सफेद रंग की गेंद (White Ball) वन-डे क्रिकेट में ही क्यों:
बाद में वनडे क्रिकेट का फैशन आया। ये डे-नाइट खेला जाता है। फ्लड लाइड में लाल गेंद विजिबल नहीं होती है। ऐसे में सफेद गेंद का कॉन्सेप्ट आया। ऐसे मैच में अलग-अलग देश के खिलाड़ी अलग-अलग रंग की पोशाक पहनते हैं। इसलिए भी गेंद का रंग सफेद रखा गया। फिर टी-20 मैच का कंसेप्ट आया। ऐसे मैच भी अक्सर डे-नाइट में ही खेले जाते हैं। सफेद रंग की गेंद को गहरे रंग की धागे से सिलाईकी जाती है।
पिंक कलर की गेंद (Pink Ball) टेस्ट क्रिकेट में क्यों:
अब टेस्ट क्रिकेट में भी डे-नाइट का कंसेप्ट आ गया है। ऐसे में फ्लड लाइट के सामने रेड कलर की गेंद विजिबल नहीं हो पाने के कारण पिंक का कंसेप्ट आया। पिंक कलर की गेंद दिन में और फ्लड लाइट दोनों में विजिबल होती है। साथ ही टेस्ट मैच में खिलाड़ियों के सफेद रंग की पोशाक के कारण वो अलग कलर में दिखती थी है। जुलाई 2009 में पहली बार ऑस्ट्रेलिया (Australia) और इंग्लैण्ड (England) की महिला टीम के बीच वनडे मैच में गुलाबी रंग की गेंद का इस्तेमाल किया गया था।
ऐसे होते हैं क्रिकेट के गेंद:
क्रिकेट की गेंदों का वजन 155.9 ग्राम और 163 ग्राम के बीच होता है और इसकी परिधि 22.4 और 22.9 सेंटीमीटर के बीच होती है। हालांकि महिला क्रिकेट में इस्तेमाल की जाने वाली गेंद मेल क्रिकेट वाली गेंदों से थोड़ी छोटी होती है। क्रिकेट की गेंद ठोस होती है। ये चमड़े और कॉर्क से बनाई जाती है।
क्रिकेट गेंदों के निर्माता:
दुनिया भर में क्रिकेट गेंद के तीन निर्माता फेमस हैं। कूकाबुरा, ड्यूक और एसजी। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में स्थित कंपनी कूकाबुरा की स्थापना वर्ष 1890 में हुई थी। ये ब्रांड दुनिया में नबर वन पर है। ड्यूक गेंदों का निर्माण एक ब्रिटिश कंपनी द्वारा साल 1760 से किया जाता है। कूकाबुरा की तुलना में ड्यूक बॉल गहरे रंग की होती है। एसजी यानी सन्सपेरिल्स ग्रीनलैंड्स बॉल्स इंडियन कंपनी है। इसकी स्थापना वर्ष 1931 में भाई केदारनाथ और द्वारकानाथ आनंद ने सियालकोट (अब पाकिस्तान में) में की थी। बंटवारे के बाद यह कंपनी भारत के मेरठ में आ गयी थी। वर्ष 1991 में BCCI ने टेस्ट क्रिकेट के लिए SG गेंदों को मंजूरी दी थी और तब से अब तक भारत में टेस्ट मैच इस गेंद के साथ खेले जाते हैं।
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