वसंत-पंचमी एक ऐसा पर्व है जिसका इशारा प्रकृति स्वयं मनुष्य को देती है। इस दिन शरद ऋतु विदा लेती है और ग्रीष्म का आगमन होता है। ऋतुओं की ही तरह वृक्षों से भी पुराने पत्ते झड़ने लगते हैं, नए पत्तों का आगमन होता है। ये समय होता है जौ और बालियों के खिलने का। रंग बिरंगी तितलियों के मंडराने का। प्राचीन भारत और नेपाल में वर्ष को जिन चार ऋतुओं में बांटा गया था, उनमें वसंत सबसे प्रिय माना जाता है। माघ महीने के पांचवे दिन वसंत पर्व मनाया जाता है। इसे श्रीपंचमी या ऋषि पंचमी भी कहा जाता है।
हिंदू धर्म के अनुयायियों में इस पर्व का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इसी दिन परमपिता ब्रह्मा ने मां सरस्वती को प्रकट किया था। कहते हैं कि जब ब्रह्मा ने जी ने सृष्टि का निर्माण किया, उस समय चहुं ओर गहरा मौन था। ब्रह्मांड में कोई आवाज ही नहीं थी। तब भगवान नारायण ने ब्रह्मा जी से उस मूक सृष्टि में ध्वनी भरने का निवेदन किया। तब ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती को प्रकट किया।
मां सरस्वती का प्राकट्य चतुर्भुज रूप में हुआ। उनके एक हाथ में पुष्प ललन्तिका (माला) थी, एक हाथ में पुस्तक थी, मां का एक हाथ वरदान की मुद्रा में था और एक हाथ में वीणा थी। तब ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती से उनकी वीणा से नाद करने का आग्रह किया। उसी नाद से सृष्टि को आवाज मिली।
ऋग्वेद में मां सरस्वती का वर्णन कुछ इस तरह किया गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।
भगवान श्रीकृष्ण ने दिया था वरदान
पुराणों के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार बांसुरी को अधरों से लगाया तो मां सरस्वती स्वयं उस बांसुरी में विराजमान हो गई थीं। तब मां सरस्वती से प्रसन्न होकर मुरलीधर कृष्ण ने उन्हें वसंत पंचमी के दिन पूजे जाने का वरदान दिया
अबूझ मुहुर्त
वसंत पंचमी का दिन हिंदुओं में बहुत पवित्र माना जाता है। ज्योतिष के मुताबिक वसंत पंचमी के दिन विवाह से लेकर गृहप्रवेश और प्राणप्रतिष्ठा तक कोई भी शुभ कार्य बिना मुहुर्त देखें किया जा सकता है।
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