मदन गुप्ता सपाटू,ज्योतिर्विद्: कुछ समुदायों में ऐसे मुहूर्तो को दरकिनार रख कर रविवार को मध्यान्ह में लावां फेरे या पाणिग्रहण संस्कार करा दिया जाता है। इसके पीछे भी ज्योतिषीय कारण पार्श्व में छिपा होता है। हमारे सौर्यमंडल में सूर्य सबसे बड़ा ग्रह है जो पूरी पृथ्वी को उर्जा प्रदान करता है। यह दिन और दिनों की अपेक्षा अधिक शुभ माना गया है।
इसके अलावा हर दिन ठीक 12 बजे अभिजित मुहूर्त चल रहा होता है। भगवान राम का जन्म भी इसी मुहूर्त काल में हुआ था। जैसा इस मुहूर्त के नाम से ही स्पष्ट है कि जिसे जीता न जा सके अर्थात ऐसे समय में हम जो कार्य आरंभ करते हैं, उसमें विजय प्राप्ति होती है, ऐसे में, पाणिग्रहण संस्कार में शुभता रहती है। अंग्रेज भी सन डे , रविवार को सैबथ डे अर्थात पवित्र दिन मान कर चर्च में शादियां करते हैं।
रविवार का अवकाश 10 जून 1890 से हुआ आरंभ
कुछ लोगों को भ्रांति है कि रविवार को अवकाश होता है, इसलिए विवाह रविवार को रखे जाते हैं। ऐसा नहीं है। भारत में ही छावनियों तथा कई नगरों में रविवार की बजाय , सोमवार को छुट्टी होती है और कई स्थानों पर गुरु या शुक्रवार को। एक दिन आराम करने से लोगों में रचनात्मक उर्जा बढ़ती है। सबसे पहले भारत में रविवार की छुट्टी मुंबई में दी गई थी। केवल इतना ही नहीं रविवार की छुट्टी होने के पीछे एक और कारण है।
हर धर्म का अपना-अपना दिन
दरअसल सभी धर्मों में एक दिन भगवान के नाम का होता है। जैसे की हिंदूओं में सोमवार शिव भगवान का या मंगलवार हनुमान का। ऐसे ही मुस्लिमों में शुक्रवार यानि की जुम्मा होता है। मुस्लिम बहुल्य देशों में शुक्रवार की छुट्टी दी जाती है। इसी तरह ईसाई धर्म में रविवार को ईश्वर का दिन मानते हैं और अंग्रेजों ने भारत में भी उसी परंपरा को बरकरार रखा था। उनके जाने के बाद भी यही चलता रहा और रविवार का दिन छुट्टी का दिन ही बन गया।
साल 1890 से पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। साल 1890 में 10 जून वो दिन था जब रविवार को साप्ताहिक अवकाश के रूप में चुना गया। ब्रिटिश शासन के दौरान मिल मजदूरों को हफ्ते में सातों दिन काम करना पड़ता था।
यूनियन नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने पहले साप्ताहिक अवकाश का प्रस्ताव किया जिसे नामंजूर कर दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत से 7 साल की सघन लड़ाई के बाद अंग्रेज रविवार को सभी के लिए साप्ताहिक अवकाश बनाने पर राजी हुए।
इससे पहले सिर्फ सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी मिलती थी। दुनिया में इस दिन छुट्टी की शुरुआत इसलिए हुई क्योंकि ये ईसाइयों के लिए गिरिजाघर जाकर प्रार्थना करने का दिन होता है।
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