Vishwakarma Puja: भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला निर्माणकर्ता, शिल्पकार, वास्तुकार और इंजीनियर माना जाता है। इसके साथ ही साथ विश्वकर्मा जी को यंत्रों का देवता भी माना जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्मा जी के निर्देश पर ही विश्वकर्मा जी ने इंद्रपुरी , द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक और लंका आदि राजधानियों का निर्माण किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा जी को ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में भी माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक बिहार के औरंगाबाद जिले के स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था। मान्यता के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया था। यहां हर साल लाखों की तादाद में लोग दूर-दूर से आते हैं। कहा जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से इस मंदिर में भगवान सूर्य की पूजा करते हैं, उनकी शभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यह दुनिया में एकलौता पश्चिमाभिमुख सूर्यमंदिर है। भगवान विश्वकर्मा द्वारा निर्मित यह सूर्य मंदिर अपनी कलात्मक भव्यता के साथ-साथ अपने इतिहास के लिए आज भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
देव माता अदिति ने की थी यहां पूजा
मंदिर को लेकर एक कथा के मुताबिक प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया।
कुष्ठ रोग ठीक होने पर राजा ऐल ने बनवाया मंदिर
मान्यता है कि सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र व अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देवारण्य (देव इलाके के जंगलों में) में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान किया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। वे इस चमत्कार पर हैरान थे।
बाद में उन्होंने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य उसी पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। इसके बाद राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया।
मंदिर में 7 रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रतिमाएं अपने तीनों स्वरूपों उदयाचल-प्रातः सूर्य, मध्याचल-मध्य सूर्य और अस्ताचल सूर्य-अस्त सूर्य के रूप में विद्यमान हैं। यह मंदिर एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। मंदिर में भगवान शिव की जांघ पर बैठी मां पार्वती की दुर्लभ प्रतिमा है।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.